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________________ अनेकान्त 64/2, अप्रैल-जून 2011 87 एक पहलू से नहीं की जा सकती। लन्दन के वैज्ञानिक लेखक डॉ. न्यूलियन हक्सले (1887-1966) ने स्पष्ट लिखा है कि 'हम अपने सिद्धान्तों को गिनती के कुछ सीधे सादे शब्दों की कारां में कैद नहीं कर सकते। जीवन बहुत उलझा हुआ है तथा वैविध्यपूर्ण है। हमें सिद्धान्तों को आस्था के द्वारा पूर्णता देनी होगी और आस्था का अन्तिम लक्ष्य जीवन है, उसकी प्रगति और समृद्धि है। अस्तु मेरी अंतिम आस्था जीवन में है। निष्कर्ष यही है जीवन, समाज और अस्तित्व तर्क का नहीं आस्था का विषय है। अनेकान्त को भी तर्क समझा गया। उसके पीछे एक कारण यह है कि अनेकान्त का उपयोग दार्शनिक क्षेत्र में ही किया गया। अनेकान्त जीवन से जुड़ा है इसलिए यह तर्क से परे आस्था का भी विषय बनता है। सारांश यह है कि हम अपने अस्तित्व, जीवन और समाज से जुड़ी समस्याओं की तह में जायेंगे तो पायेंगे कि ये समस्यायें अनेकान्त को नहीं समझ सकने से उत्पन्न हुई हैं। संदर्भ:1. समयसार- आचार्यकुन्दकुन्द की अमृतचन्द्र कृत आत्मख्याति टीका, प्रकाशन-पं. टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर, 1999 युक्त्यनुशासनम्- आचार्य समन्तभद्र; समन्तभद्र ग्रंथावली, संकलन-डॉ. गोकुलचन्द जैन, प्रकाशन- वीर सेवा मंदिर ट्रस्ट, वाराणसी, प्रथम संस्करण-1989 श्रमण, (शोधपत्रिका), पार्श्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी 4. पाश्चात्यदर्शन- चन्द्रधर शर्मा, मोतीलाल बनारसीदास प्रकाशन, दिल्ली, 2006 5. जैनधर्म: एक झलक; डॉ. अनेकान्त जैन, श्री शांतिसागर छाणी स्मृति ग्रंथमाला, बुढ़ाना, (उ. प्र.), 2007 6. अनेकान्त सिद्धांत का दुरुपयोग (शोध लेख), जैन अनेकान्त कुमार, प्रकाशन- अनेकान्त (शोध त्रैमासिक), वर्ष-52, किरण-3, जुलाई-सितम्बर-1999, पृष्ठ 23-24 7. अनेकता में एकता (लेख) डॉ. अनेकान्त जैन, अणुव्रत पाक्षिक, 16-30 सितम्बर, 2002, पृ. 22 8. परंपरा और अनेकान्त (लेख)- डॉ. अनेकान्त जैन, अणुव्रत पाक्षिक, 1-15 नवम्बर, 2002 पृष्ठ-15 9. अनेकान्त का अर्थ है जीवन का अस्तित्व (लेख)- डॉ. अनेकान्त जैन, प्रकाशन, सराक सोपान (मासिक), दिल्ली रोड, मेरठ (उ.प्र.) जैनदर्शन विभाग, श्री लाल बहादुर शास्त्री रा. संस्कृत विद्यापीठ (मानित विश्वविद्यालय), नई दिल्ली-110016
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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