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________________ 85 अनेकान्त 64/2, अप्रैल-जून 2011 संस्कृति को स्वीकार करने का हठाग्रह लेकर हम चलेंगे तो हम समाज में नहीं रह सकते। क्योंकि हमें हिन्दू, जैन, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई इत्यादि समाज में नहीं रहना है बल्कि विश्व समाज में रहना है जहाँ बहुलता ही बहुलता है। ध्यान रखें, सामाजिक परिप्रेक्ष्य में एकरूपता का नाम 'एकान्त' है और बहुलता का नाम ही 'अनेकान्त' है। जीवन एकान्तवादी नहीं हो सकता विचारों के आधार पर मनुष्य कदाचित् एकान्तवादी भी हो सकता है, किन्तु जीवन और समाज में व्यक्ति एकान्तवादी नहीं हो सकता। जिंदगी अनेकान्त का नाम है। एक मुसलमान विचारों के आधार पर भले ही सिवाय इस्लाम के कहीं भी सिर न झुकाये किन्तु जब वह व्यवसाय करता है तब ग्राहक कौन है? हिन्दू अथवा ईसाई या अन्य कोई? वह इसका भेद नहीं करता, वह उसे सम्मान देता है। स्वयं उसे जीवन के अनेक कार्यों के मध्य मात्र इस्लाम अनुयायियों से काम चल जायेगा- ऐसा नहीं है। फिदा हुसैन एक ब्राह्मण अभिनेत्री माधुरी दीक्षित पर यदि फिदा है तो वह यह विचार नहीं करता है कि यह तो मुसलमान नहीं है मैं इसका चित्र क्यों बनाऊँ? उसी प्रकार हिन्दू या अन्य मतानुयायी भी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सभी से कार्य करवाते हैं। यदि कोई मुस्लिम डॉक्टर कोई बहुत बड़ा ऑपरेशन किन्हीं पण्डित जी या पादरी जी का करता है तब इसमें से कोई मना नहीं करता। शाहरुख खान, सैफअली खान, गुलाम अली से लेकर मुहम्मद अजहरुद्दीन तक सभी मात्र मुसलमानों के ही चहेते हैं ऐसा नहीं है। उसी प्रकार सचिन तेंदुलकर, ऐश्वर्या राय, अमिताभ, अभिषेक बच्चन, अनिल और शाहिद कपूर तथा जगजीत सिंह पर मात्र हिन्दू ही जान छिड़कते हैं ऐसा भी नहीं है। भवन निर्माण में यदि मुस्लिम मिस्त्री सिद्धहस्त हैं तो पण्डित जी उसी से मकान बनवाते हैं यहाँ तक कि मंदिर तक। हम स्वयं विचार करें कि क्या जीवन कभी एकान्तवादी हो सकता है? जैन या हिन्दू नि:शुल्क अस्पतालों में मुस्लिम महिलाओं एवं बच्चों की लम्बी कतार यह कभी विचार नहीं करती कि यह तो काफिरों के द्वारा बनाया गया अस्पताल है यहां इलाज मत कराओ। यहां के ट्रस्टी या डॉक्टर भी ऐसा कोई बोर्ड नहीं लगाते कि वे मुसलमानों का निःशुल्क इलाज नहीं करेंगे। क्या सामाजिक जीवन में अनेकान्त को स्वीकार किये बिना इस प्रकार के सुन्दर जीवन की कल्पना संभव है? विभिन्नता, विविधता और विरोध यदि समाप्त हो जायें, जैसी कि कामनायें की जाती हैं; तो क्या अस्तित्व बचेगा? यह कल्पना भी कितनी निरर्थक मालूम होती है कि सर्वत्र एकरूपता, परिपूर्णता कायम हो जाये। यह वस्तु स्वभाव के विपरीत कल्पना है, जो कि असंभव है। अनेकान्त दर्शन की व्यावहारिकता जैन साहित्य में अनेकान्त दृष्टि की प्रधानता है। यह अनेकान्त में एकता करने का सशक्त माध्यम है। यह सभी के हितों का चिंतन करता है। आधुनिक युग में महात्मा गाँधी के साथ सर्वोदय शब्द जुड़ा हुआ है। डॉ. रामजी सिंह का मानना है कि संस्कृति
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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