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________________ अनेकान्त 63/1, जनवरी-मार्च 2010 करके उसे किसी परवर्ती विद्वान की कृति सिद्ध किया है। इसकी पुष्टि में उन्होंने अनेक पुष्ट एवं प्रामाणिक तर्क प्रस्तुत किये हैं। तृतीय भाग में मुख्तार साहब ने सोमसेन के त्रिवर्णाचार, धर्मपरीक्षा (श्वेताम्बरी), अकलंक प्रतिष्ठा पाठ और पूज्यपाद उपासकाचार का परीक्षण करके उन्हें तत्-तद् आचार्यों की कृति न होने की पुष्टि की है। इसी प्रकार चतुर्थ भाग में उन्होंने शिथिलाचार का पोषण करने वाले ग्रंथ सूर्यप्रकाश की समीक्षा की है और स्पष्ट किया है कि समाज को इस प्रकार से नकली साहित्य से बचना चाहिये। वस्तुत: उपर्युक्त ग्रंथों की परीक्षा करके मुख्तार साहब ने समाज का स्थितिकरण किया है। ऐतिहासिक निबन्ध: आचार्य जगुलकिशोर मुख्तार साहब ने शताधिक ऐतिहासिक एवं शोध-खोजपूर्ण निबन्धों का लेखन कर जहाँ शोधार्थियों को एक नवीन दिशा दी है, वहीं उन्होंने जैन समाज में प्रचलित विभिन्न धारणाओं अथवा कुरीतियों का शास्त्र-सम्मत विश्लेषण करके उनका निराकरण किया है। ये लेख बीसवीं शती के प्रथम छह-सात दशकों की धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक गतिविधियों के साक्षी हैं। युग को पहिचानकर युग के साथ चलना और सर्वसमाज को दिशा-निर्देश देना युगपुरुष की विशेषता होती है और यह विशेषता पं. जुगलकिशोर मुख्तार साहब में थी। अतः वे सच्चे अर्थों में युगपुरुष किंवा युगवीर थे। पं. जुगलकिशोर साहब के ये लेख समय-समय पर तत्कालीन विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुये थे, जो बाद में संकलित कर युगवीर निबन्धावली के प्रथम एवं द्वितीय खण्ड में प्रकाशित हुये हैं। प्रथम खण्ड में इकतालीस लेख हैं, जो विविध विषयों से संबन्धित हैं। द्वितीय खण्ड में पैंसठ लेख हैं। द्वितीय खण्ड के लेख उत्तरात्मक, समालोचानात्मक, स्मृति परिचयात्मक, विनोद शिक्षात्मक एवं प्रकीर्णक के नाम से पाँच भागों में विभक्त हैं। उत्तरात्मक लेख वे हैं, जो मुख्तार साहब के लेखों पर टिप्पणी करने पर उन्होंने उत्तर स्वरूप लिखे ये तथ अपने पूर्वलेखों में प्रकट अभिप्रायों की शास्त्रानुसार पुष्टि करते हैं। इसी प्रकार अन्य भागों में भी विस्तृत लेख लिखे हैं। विनोद-शिक्षात्मक लेख तो बड़े मजेदार हैं। ये लेख जहाँ पाठकों का मनोविनोद करते हैं, वहीं जैनदर्शन के गूढ रहस्यों का उद्घाटन भी करते हैं। युगवीर निबन्धावली के दो भागों में प्रकाशित अनेक लेख स्वतंत्र ट्रेक्ट के रूप में भी प्रकाशित हो चुके हैं। इन्हीं में से एक ट्रेक्ट का नाम है-'अनेकान्त रस लहरी'। इसमें मख्तार साहब के चार लेखों का संग्रह है। ये लेख बालोपयोगी तो हैं ही, साथ ही उन लोगों के लिये भी महत्त्वपूर्ण हैं जो अनेकान्तवाद को छलवाद या घृणा की दृष्टि से देखते हैं। पं. मुख्तार साहब ने इसमें विविध उदाहरणों के माध्यम से अनेकान्तवाद सिद्धान्त को
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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