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________________ अनेकान्त 63/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2010 राष्ट्र कल्याण में श्रावक की भूमिका - डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन जैनधर्मानुसार व्रतधारियों की दो कोटियाँ हैं- (1) महाव्रती-मुनि, और (2) अणुव्रती श्रावक।' श्रावक वह सद्गृहस्थ होता है जो सप्त व्यसनों का त्यागी, अष्ट मूलगुणधारी और पंच-अणुव्रतों का पालक होता है। उसका आचरण शास्त्र सम्मत एवं स्वपर हितैषी होता है। द्यूत, (जुआ खेलना),मांस भक्षण, मद्य (मदिरापान), वेश्यासेवन, शिकार, चोरी और पर-स्त्री सेवन; ये सात व्यसन हैं। ____ मद्य, मांस, मधु का त्याग और अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, परिग्रहपरिमाणाणुव्रत और ब्रह्मचर्याणुव्रत; ये अष्ट मूलगुण हैं।' अन्यत्र मद्य-मांस-मधु का त्याग, रात्रि भोजन त्याग, पंच उदुम्बर फलों का त्याग, देव वंदना, जीव दया करना और पानी छान कर पीना आदि को अष्टमूल गुणों में सम्मिलित किया गया है। ___ अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, परिग्रहपरिमाणाणुव्रत और ब्रह्मचर्याणुव्रत; ये पाँच अणुव्रत कहे गये हैं। सागार धर्मामृत की टीका में आया है कि "श्रणोति गुर्वादिभ्यो धर्मम् इति श्रावकः' अर्थात् जो गुरुओं से धर्म को सुनता है वह श्रावक है। वह धर्म को सुनता है, धारण करता है और आचरण भी करता है। महाभारत के अनुसार: श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चाप्यवधार्यताम्। आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्॥ अर्थात् धर्म के सार को सुनो और सुनकर धारण (ग्रहण) करो। अपने से प्रतिकूल आचरण (व्यवहार) दूसरों के साथ भी नहीं करना चाहिए। श्रावक इस कसौटी पर खरा उतरने का प्रयास करता है। वह धर्म को सुनता है, हित-अहित रूप विवेक से युक्त होता है और क्रियाओं में पाप से विरत होता है। श्रावक का जीवन जीने वाला स्वयं का उपकार करता है और राष्ट्र का भी हित साधन करता है। जिनेन्द्रभगवान की वाणी पर अमल करते हुए चलने वाला श्रावक अपने चरित्र और सत्कार्यों से राष्ट्र को उन्नत बनाता है। 'दर्शनप्राभृत' में कहा है कि "जिणवयण मोसहमिणं विसयसुहविरेयणं अमियभूयं। जरामरणवाहिहरणं खयकरणं सव्वदुक्खाणं॥ अर्थात् जिन भगवान् की वाणी परमौषधिरूप है। यह विषय सुख का त्याग कराती है। यह अमृत रूप है। जरा-मरण व्याधि को दूर करती है तथा सर्व दुखों का क्षय करती है।
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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