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अनेकान्त 63/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2010
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इस महान ग्रंथ की अनेक टीकाएँ की। श्री समन्तभद्र स्वामी ने षट्खण्डागम के 5 खण्डों की 84 हजार श्लोक प्रमाण संस्कृत में टीका लिखी है परन्तु वह सब उपलब्ध नहीं है।
अन्तिम टीकाकार कलिकाल सर्वज्ञ भगवंत वीरसेन आचार्य हुए। जिन्होंने कार्तिक शुक्ला 13 शक संवत् 738 में इस ग्रंथ की टीका पूरी की जो धवला के नाम से प्रसिद्ध है। यह 72000 श्लोक प्रमाण है। वीरसेन आचार्य केवली के समान समस्त विद्याओं के पारदर्शी थे। उनकी सर्वार्थ गामिनी नैसर्गिक प्रज्ञा को देखकर सर्वज्ञ की सत्ता में किसी मनीषी को शंका नहीं रही थी। श्री वीरसेन आचार्य की धवला टीका ने आगम सूत्रों को चमका दिया, इसलिए उनकी धवला को भारती की भुवन स्थापिनी कहा है। (आदि पुराण उत्थानिका)
श्री धरसेन आचार्य के समय गुणधर आचार्य हुए हैं। उन्होंने कषाय प्राभृत की रचना की थी। जय धवला में श्री यतिवृषभ आचार्य को कषाय प्राभृत का वृत्ति सूत्रकर्ता कहा है। वृत्ति से तात्पर्य जिसमें सूत्रों का ही विवरण हो। भगवंत वीरसेन आचार्य ने भी इसके एक भाग की टीका लिखी, शेष भाग श्री जिनसेन आचार्य ने पूरे किये। जो जय धवला के नाम से विख्यात है। इसकी टीका 60000 श्लोक प्रमाण है।
षट्खण्डागम का छठवां खण्ड महाबंध है। जो महा धवल के नाम से जाना जाता है। इसकी टीका 40 हजार श्लोक प्रमाण है तथा 7 भागों में प्रकाशित है।
जैन आगम परम्परा में षट्खण्डागम प्रथम प्रामाणिक आगम ग्रंथ है। इस ग्रंथ के आरंभ में आचार्य श्री पुष्पदंत स्वामी ने “णमो अरिहंताण णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं" की रचना कर पंच परमेष्ठी को नमस्कार किया है जो मंगलाचरण के रूप में निबद्ध किया गया है। यह मंत्र शास्त्र की दृष्टि से महामंत्र है। पूर्व संचित कर्मों के विनाश का नाम मंगल है। -(ध 9/2) ___मंत्र शब्द 'मन' धातु से ष्ट्रन् (त्र) प्रत्यय लगाकर बनाया गया है। 'मन्यते ज्ञायते आत्मा देशोऽनेन इति मंत्र" अर्थात् जिसके द्वारा आत्मा का आदेश निजानुभव जाना जाए वह मंत्र
णमोकार मंत्र नमस्कार मंत्र है, इसमें समस्त पाप मल और दुष्कर्मो को भस्म करने की शक्ति है। इस मंत्र के उच्चारण से आत्मा में धनात्मक और ऋणात्मक दोनों प्रकार की विद्युत शक्तियां उत्पन्न होती हैं। जिससे कर्म कलंक भस्म हो जाता है। इस मंत्र में समस्त श्रुत ज्ञान की अक्षर संख्या निहित है। जैनदर्शन के तत्त्व, पदार्थ, द्रव्य, गुण, पर्याय, नय निक्षेप, आश्रव, बंध आदि इस मंत्र में विद्यमान हैं। समस्त मंत्रों की मूलभूत मातृकाएं (ध्वनियां) इस महामंत्र में वर्तमान हैं। (मं.मं.ब.एक अनु.)
णमोकार मंत्र में मातृका ध्वनियों का सृष्टिक्रम, स्थितिक्रम और संहारक्रम सन्निविष्ट है। इसीलिए यह मंत्र आत्म कल्याण के साथ लौकिक अभ्युदयों को देने वाला है। संहार क्रम कर्म विनाश को प्रकट करता है तथा सृष्टिक्रम और स्थिति क्रम आत्मानुभूति के साथ लौकिक अभ्युदयों की प्राप्ति में भी सहायक है।