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________________ अनेकान्त 63/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2010 साकारमंत्रभेद पति-पत्नी की अथवा कन्या की या युवक की गुप्त बातों को अपमान करने के उद्देश्य से अन्य लोगों के सामने प्रकट करना जिससे उसकी बदनामी हो जाये। इसमें जिस प्रकार पुरुष की गुप्त बातों को प्रकट करने का निषेध पुरुष अथवा स्त्री दोनों के लिए किया है तथा स्त्री की गुप्त बातों को प्रकट करने का निषेध पुरुष अथवा स्त्री दोनों के लिए है। भारतीय कानून में एक दूसरे के प्रति आक्षेप लगाकर गुप्त बातों को प्रकट करने पर यदि किसी की बदनामी होती है तो वह गुप्त बात को प्रकट करने वाला आरोपी धारा 500 के तहत दो वर्ष कारावास तथा जुर्माने की सजा का हकदार है। निष्कर्ष ___ भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से ही धर्म का जोर रहा है परन्तु वर्तमान समय में लोगों के विचारों में परिवर्तन आया और धर्म का स्थान परिवर्तन होकर कर्म ने ले लिया। कर्म के वशीभूत होकर व्यक्ति न्याय-अन्याय का ध्यान न रख आजीविका का उपार्जन करने लगा। भारतीय समाज में अन्याय तथा पाप कर्म में रोक लगाने के लिए प्राचीन काल से ही कानून व्यवस्था प्रारंभ हुई। धर्म और कानून का उद्देश्य पाप प्रवृत्ति को समाप्त करना तथा पुण्य प्रवृत्ति को बढ़ावा देना है। इसी कारण यदि व्यक्ति धर्म का पालन सम्यक् प्रकार से करता है तो उसे कानून की आवश्यकता नहीं होती तथा कानून का पालन भी बिना प्रयास के हो जाता है। इसी कड़ी में जैनदर्शन के सिद्धांतों का प्रयोग कानून व्यवस्था में सर्वाधिक हुआ है अत: जैनदर्शन के सिद्धांतों का पालन स्वतः पाप से निवृत्ति का मार्ग संदर्भ1. आदिपुराण, आचार्य जिनसेन, संपादक-डॉ. पन्नालाल साहित्याचार्य, प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली, 2004 सर्वार्थसिद्धि, आचार्य पूज्यपाद स्वामी, संपादक-पं. फूलचन्द शास्त्री, प्रकाशक- भारतीय ज्ञानपीठ, संस्करण-चतुर्थ। 3. तत्त्वार्थसूत्र, आचार्य उमास्वामी जी, संयोजन -ब्र. प्रदीप शास्त्री, प्रकाशक-श्री दि. साहित्य प्रकाशक समिति बरेला, जबलपुर, संस्करण-प्रथम। 4. मनुस्मृति, हिन्दी टीकाकार-पं. हरगोविन्द शास्त्री, सं. गोपाल शास्त्री, प्रकाशन-चौखम्बा संस्कृत संस्थान, वाराणसी, 2006 5. बृहद् अपराध विधियाँ, दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973, भारतीय दण्ड संहिता, 1860, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1972, पी. के. मुखर्जी, प्रकाशक- मॉडर्न लॉ हाऊस, 2006 -जैन अनुशीलन केन्द्र राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर जयपुर (राजस्थान)
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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