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________________ अनेकान्त 63/3, जुलाई-सितम्बर 2010 7. श्रावकधर्मप्रदीप, अ0-3, श्लोक-93 8. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा- 331 9. सागारधर्मामृत, अ0-2, श्लोक-82 10. वही, अ0-4, श्लोक-10 11. श्रावकधर्मप्रदीप, अ0-3, श्लोक-94 12. जैनधर्म का सरल परिचय, पृ. 125 13. श्रावकधर्मप्रदीप, अ0-3, श्लोक-95 14. आरंभेऽपि सदा हिंसा सुधीः साड्.कल्पिकी त्यजेत। नतोऽपि कर्षकादुच्चैः पापोध्नन्नपि धीवरः।। सागारधर्मामृत, अ0-2, श्लोक-82 15. योगशास्त्र, 2, 19 16. पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, कारिका- 43 17. वही, कारिका-64 18. सागारधर्मामृत, अ0-6, श्लोक- 15 19. अ0-5, श्लोक-21-33 20. वही, श्लोक-7 21. वही, श्लोक-6 22. उपासकाध्यन, 321-22 23. मद्यमांसमधुत्यागैः सहाणुव्रतमञ्चकम्। अष्टौमूलगुणानाहुर्गृहिणां भ्रमणोत्तमाः।। रत्नकरण्डश्रावकाचार, श्लोक-14 6रागजीवबधापायभूयस्त्वात्तद्वदुत्सृजेत। रात्रिभक्तं तथा युज्यानपानीयमगालितम्।। सागारधर्मामृत, अ0-2, श्लोक-66 24. यशस्तिलक चम्पू, उत्तरखण्ड, आश्वास-4, श्लोक-55 25. श्रावकधर्मप्रदीप, अ0-3, श्लोक-96 संस्कृत विद्या एवं धर्म विज्ञान संकाय ___ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी- २२१ ००१(उ.प्र.)
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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