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________________ अनेकान्त 63/3, जुलाई-सितम्बर 2010 21 पद का क्रमशः तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक तथा आप्तपरीक्षा की स्वोपज्ञ टीका में प्रयोग किया है। इसके बाद के आचार्य वीरसेन ने धवला में 'तच्चत्थसुत्ते' अर्थात् तत्त्वार्थसूत्र का प्रयोग किया है। श्रवणबेलगोला के शिलालेखों में भी तत्त्वार्थसूत्र शब्द लिखा है। पूर्वापर इस धारा को देखें तो प्राचीनतम प्रमाण स्वयं में सर्वार्थसिद्धि है। अतः प्राचीन नाम तो तत्त्वार्थ ही प्रतीत होता है, किन्तु सूत्र शैली में निरूपित होने से पश्चाद्वर्ती काल में सूत्र शब्द तत्त्वार्थ के साथ रूढ़ हो गया होगा, क्योंकि परवर्ती सभी आचार्यो एवं ग्रंथकारों ने तत्त्वार्थसूत्र पद का प्रयोग किया है। इस आलेख का निष्कर्ष यह है कि तत्त्वार्थसूत्र का मंगलाचरण आचार्य उमास्वाति द्वारा विरचित है। तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता का नाम उमास्वाति तथा गृद्धपिच्छ मानना उचित है। सूत्रकार के रूप में आचार्य उमास्वाति की एक मात्र रचना तत्त्वार्थसूत्र ही स्वीकार है। ग्रंथ का नाम तत्त्वार्थ है, किन्तु परवर्ती काल में इसका सूत्र शब्द के साथ प्रयोग रूढ़ हो गया है। इसके बाद अतिरिक्त भी अनेक ऐसे विषय हैं जिन पर अभी पुनः शोध की आवश्यकता है। दोनों परंपराओं के सूत्रों पर तर्क-संगत तुलनात्मक अध्ययन भी इसी क्रम में अपेक्षित संदर्भ1. ...निग्रंथाचार्यवर्यः अतिनिकटीभवत्पमनिर्वाणेनासानभव्येन द्वैयाकनाम्ना भव्यवरपुण्डरीकेण स्पपृष्टः भगवन् किमात्मनेहितम्?इति।भगवानपितत्प्रश्नवशात् 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रलक्षणोपक्षितसन्मार्गसम्प्राप्यो मोक्षो हितः' इति प्रतिपादयितुकाम इष्टदेवता वशेषं नमस्करोति-मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृताम्। ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वन्दे तद्गुणलब्धये।।-तात्पर्यवृत्ति, पृ.। श्रीमत्तत्त्वार्थशास्त्रभ्दुतसलिलनिधेरिद्धरत्नोभ्दवस्य, प्रोत्थानारम्भकाले सकलमलभिदे शास्त्रकारैःकृतं यत्। विद्यानन्दैः स्वशक्त्या कथमपि कथितं सत्यवाक्यार्थसिध्दयै।।- आ.प., श्लोक 123 3. किं पुनस्तत्वपरमेष्ठिनो गुणस्तोत्रं शास्त्रादौ सूत्रकारः प्राहुरिति निगद्यते। 4. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, पृ. 6 5. आप्तपरीक्षा, श्लोक 119 धवला, पु.5/316 7. पार्श्वनाथचरित, 1/16 8. जैन शिलालेख संग्रह, प्रथम भाग, शि. सं. 198 9. आर्यमहागिरेस्तु शिष्यौ बहुल-बलिस्सहौ यमल-भ्रातरौ तत्र बलिस्सहस्य शिष्यः स्वातिः, तत्त्वार्थादयो ग्रंथास्तु तत्कृता एव सम्भाव्यन्ते। तच्छिष्यः प्रज्ञापनाकृत् श्रीवीरात् षट्सप्ता कशतत्रये (376) स्वर्गभाक्। धर्मसागरीय पट्टावली 10. जैन शिलालेख संग्रह 40,42,43,47,50 तथा 108 नं. शिलालेख। 11. तत्त्वार्थाधिगमभाष्य की प्रशस्ति। 12. 'तत्त्वार्थसूत्र में प्रयुक्त च पद' लेखक- श्री आनन्द कुमार जैन ऋषभदेव ग्रंथ माला, श्री दिगम्बर जैन अशिय क्षेत्र मंदिर संघी जी, सांगानेर, जयपुर 13. तत्त्वार्थसूत्रकर्तारम् उमास्वामिमुनीश्वरम्। श्रुतिकेवलिदेशीयं वन्देऽहं गुणमन्दिरम्।। -निर्वाण भवन, बी-२/२४९, लेन सं. १४
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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