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अनेकान्त 62/3, जुलाई - सितम्बर 2009
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कृतियां निर्मित की, उनका झुकाव प्रायः कला की अपेक्षा परिणामों की ओर विशेष रहा है। अतः कलागत विलक्षणता इने-गिने स्थानों में ही देखने को मिलती है।
आदिमयुगीन एवं प्रागैतिहासिक काल की संस्कृति का जीता जागता चित्रण यदि भारत में आज भी जीवन्त है- तो वह बुन्देलखण्ड ही में है। उस युग के चित्र एंव कलाएं आज भी गुफाओं में विद्यमान हैं। यहां के मठ मंदिर मूर्ति और गुफाएं तथा बीजक शिलालेख आदि इस बात के साक्षी हैं कि भारतीय परंपराओं में जनजीवन सामाजिक व्यवस्था और धार्मिक परंपरा कहां कब और कितनी पल्लवित और फलीभूत हुई। बुन्देलखण्ड की जैन संस्कृति और उससे संबन्धित आध्यात्मिक, सामाजिक नैतिक एवं प्राकृतिक वैभव के परिप्रेक्ष्य में विपुल ऐतिहासिक तथ्यों का अध्ययन किया जा सकता है। ___ऐतिहासिक दृष्टि से हम आदिमयुगीन समय से लेकर वर्तमान काल तक जैन संस्कृति का पर्यवेक्षण इतिहास क्रम के आधार पर छह विभागों में विभक्त कर सकते हैं।
(१) प्रागैतिहासिक काल - जो ईस्वी पूर्व 6 सौ वर्ष से भी पहले माना गया है में भी मंदिरों के निर्माण होने के प्रमाण साहित्य में उल्लिखित हैं।
(२) मौर्य और शक काल - इस काल में मंदिरों का प्रचुर मात्रा में निर्माण कार्य हुआ इस युग की मुद्राओं पर अंकित मंदिरों के चिन्ह इस तथ्य के साक्षी हैं। विदिशा जो बुन्देलखण्ड का एक ऐतिहासिक नगर है की खुदाई के समय प्राप्त अवशेष ईस्वी पूर्व 200 वर्ष के हैं। मौर्य कालीन-ब्राह्मी का भी प्रयोग यहां के तीर्थो व शिला फलकों में देखने को मिलता है।
(३) शक सातवाहन काल - ईसा पूर्व 200 वर्ष तक इस काल की परिगणन की गई है। इस युग में जैन मंदिरों का विपुल मात्रा में निर्माण होना पाया जाता है। इस युग में बने मंदिरों के अवशेष अनेक प्राचीन तीर्थो पर आज भी पाए जाते हैं।
(४) कुषाण काल - ईसा की तीसरी शताब्दी तक का काल है। इस काल में मंदिरों के साथ-साथ राजाओं की प्रतिमाओं का भी निर्माण हुआ जिन्हें देवकुल की संज्ञा से अभिहित किया जाता था। इस काल के मंदिर मथुरा, अहिक्षेत्र, कम्पिल, हस्तिनापुर के साथ बुन्देलखण्ड के कुछ स्थलों में देखे गए हैं। इस युग की प्रतिमाएं तो बुन्देलखण्ड में आज भी अनेक जगह पाई जाती हैं।
(५) गुप्तकाल - ईसा की चौथी शदी से छठवीं शताब्दी तक का समय इस काल में आता है। गुप्तकाल में मंदिरों की कलाकृति सुन्दरता के रूप में प्रतिष्ठित हुई। बुन्देलखण्ड के तीर्थो में देवगढ, चन्देरी, मदनपुर, खजुराहो, शिवपुरी आदि स्थानों में इस युग के मंदिर पाए गए हैं। द्वार स्तम्भों की सजावट तोरण द्वार पर देव मूर्तियां लघु शिखर एवं सामान्य गर्भगृह युक्त मंदिर इस युग की शैली के प्रतिमान रहे हैं। विशिष्ट प्रकार की मूर्तियों का निर्माण इस युग की विशेषता है। जो प्रायः बुन्देलखण्ड के अधिकांश प्राचीन तीर्थ स्थलों में मिलती हैं।
(६) गुप्तोत्तर काल - ईसा की 7वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक के समय को इस श्रेणी में अभिव्यक्त कर सकते हैं। वर्द्धनकाल गुर्जर प्रतिहार काल-चन्देली शासनकाल युगल मराठा काल एवं अंग्रेजी शासनकाल तक का समय गुप्तोत्तर काल अन्तर्गत परिगणित