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________________ बुन्देलखण्ड के जैन तीर्थो में जैन संस्कृति और कला की व्यापकता प्रतिष्ठाचार्य पं. विमलकुमार जैन सोरया बुन्देलखण्ड अपने सांस्कृतिक गौरव के लिए सदैव कीर्तिमान रहा है। बुन्देलखण्ड शिल्पकला, संस्कृति, शिक्षा, साहस शौर्य एवं अध्यात्म का धनी, प्राकृतिक सौन्दर्य और खनिज पदार्थों का केन्द्र रहा है। यहां के जनमानस में सदैव सदाचरण की गंगा प्रवाहित होती रही है। कला और संस्कृति के अद्वितीय गढ़ यहां की गौरव गरिमा के प्रतीक बने हैं। यहां का कंकर कंकर शंकर की पावन भावना से धन्य है। जहां विश्व में भारत अपनी आध्यात्मिक गरिमा और संस्कृति-सभ्यता में सदैव अग्रणी रहा है वहां बुन्देलखण्ड भारत के लिए अपनी आध्यात्मिक परंपरा और संस्कृति में इतिहास की महत्त्वपूर्ण भूमिका करने में अग्रणी रहा है। अध्यात्म की प्रधानता हमारे देश की परंपरागत निधि रही है तथा भारतीय संस्कृति में अध्यात्म की मंगल ज्योति सदैव प्रकाशवान रही है। भारत का दर्शन साहित्य, भाषा, मूर्तियां, वास्तुकलाएं और सामाजिक परंपराएं सभी में अध्यात्म की आत्मा प्रवाहित है। धार्मिक भावनाओं को शाश्वत बनाये रखने के लिए मूर्तियों और मंदिरों का निर्माण किया गया। मंदिरों की रचना और उनमें चित्रित कलाएं उस युग की सामाजिक और धार्मिक परंपराओं की थाती हैं। हमें इतिहास की साक्षी ओर संस्कृति का स्वरूप इन्हीं वास्तुकला के प्रतिमानों से उपलब्ध हुआ है। भारत के प्राचीन धर्मायतन, तीर्थस्थल, मंदिर और वास्तुकला की कलाकृतियां आज इस तथ्य के साक्षी हैं कि जैन धर्म प्राचीनकाल से भारत में व्यापक रूप से सर्वत्र प्रचलित रहा है। बुन्देलखण्ड जिसका भूभाग वर्तमान में मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के भागों में आवंटित कर दिया गया है। सदैव से जैन संस्कृति का जीता जागता प्राणवान गढ़ रहा है। बुन्देलखण्ड भारत की प्राचीन संस्कृति और वास्तुकला को आज भी अपने आपमें संजोए भारतीय संस्कृति और अध्यात्म को प्राणवान बनाए है। शिल्प की दृष्टि से बुन्देलखण्ड की जैन कला अपना विशिष्ट महत्त्व रखती है। यहाँ की कला और स्थापत्य में युग का सामाजिक और सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक जीवन सदैव इतिहास की उज्ज्वल आभा लिए हुए विकसित रहा है। कला, साहित्य, लिपि, वेशभूषा, भाषा, शिक्षा आदि की पर्याप्त जानकारी के लिए बुन्देलखण्ड का अपना महत्त्व रहा है। यदि हमें भारतीय संस्कृति की यथार्थ ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध करना है तो बुन्देलखण्ड की वास्तुकला के प्रतिमानों का बारीकी से अध्ययन करना होगा। बुन्देलखण्ड में स्थापत्यों, शिल्पियों, कलाकारों एवं कलाप्रेरकों ने अध्ययन प्रधान
SR No.538062
Book TitleAnekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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