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अनेकान्त 62/3, जुलाई - सितम्बर 2009
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हल बना देता है तो किसान सुखी हो जाता है और रथ का इच्छुक सारथि दु:खी हो जाता है और बढ़ई तटस्थ रहता है अर्थात् हर्ष-विषाद कुछ भी नहीं करता क्योंकि वह आजीविका की दृष्टि से काष्ठ को छील ही रहा था। यह देखकर ऐसा कौन बुद्धिमान् है जो वस्तु को उत्पाद-व्यय और ध्रौव्य रूप स्वीकृत न करे। इन उदाहरणों से सिद्ध होता है कि वस्तु त्रयात्मक- उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक है। ___ अद्वैतवादी मान्यता का विरोध करते हुए आचार्य ज्ञानसागर जी लिखते हैं कि यदि एक अद्वैतवाद को ही स्वीकृत किया जाये तो वह परिणाम-परिवर्तन से रहित होगा। परिणाम का कारण स्वीकृत किये बिना स्वयं परिणाम हो नहीं सकता और परिणाम का कारण स्वीकृत किया जावे तो अद्वैतवाद समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार यदि यह माना जाये कि संसार में सब पदार्थ पहले से ही विद्यमान है, अदृष्टवस्तु कुछ भी नहीं, तो यह मान्यता भी प्रत्यक्ष दिखने वाली विचित्रता का विरोध करने वाली है नित्य नयी-नयी वस्तुएं उत्पन्न होती है, इसका विरोध होगा। परिणाम नवीन विचित्र वस्तुओं की उत्पत्ति का कारण माना जाय तो अद्वैतवादी मान्यता में विरुद्धता रूप नदी के प्रवाह में पुल क्या होगा? विरुद्धता का परिहार कौन करेगा?
वस्तुतः अनेकान्त पूर्णदर्शी है और एकान्त अपूर्णदर्शी, जो एकान्तवाद में विश्वास करने वाले हैं तथा दूसरों के सत्यांश स्वीकार नही करते वे तत्वरूपी नवनीत को प्राप्त नहीं कर सकते। हम एकान्त दृष्टि से वस्तु के एक अंश को ही जान सकते हैं। सत्यांश कभी भी पूर्ण सत्य नहीं हो सकता वस्तु के विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार करने पर ही अच्छे ढंग से समझाने के लिए जैन ग्रंथों में एक हाथी वाला दृष्टांत प्रचलित है जो इस प्रकार है -
किसी गाँव में पहली बार एक हाथी आया। गाँव के लोगों ने उससे पूर्व हाथी नहीं देखा था। उस गाँव में पाँच अन्धे व्यक्ति रहते थे। हाथी के आने का समाचार सुनकर वे भी उसके पास पहुंचे। अन्धे होने के कारण वे हाथी को देख नहीं सकते थे। अतः हाथी को छू-छूकर देखा। हाथी को छूने पर सभी को अलग-अलग अनुभव हुआ। उनमें से एक ने पूंछ को छूआ तो कहने लगा कि 'हाथी रस्सी जैसा है', दूसरे ने सूण्ड को छुआ और कहा- 'यह तो कोई झूलने वाली वस्तु की आकृति का प्राणी है', तीसरे ने पैर को छुआ और कहा "हाथी तो खम्भे जैसी आकृति का प्राणी है-, चौथे ने हाथी के पेट को छुआ और कहा 'हाथी तो दीवार की तरह है', पाँचवे ने उसके कान को छुआ तो कहा 'हाथी तो सूप (छाज) की आकृति वाला प्राणी है'। इस प्रकार उन पाँचों ने अलग- अलग अनुभवों के आधार पर उस हाथी के संदर्भ में अलग- अलग निष्कर्ष निकाला। पाँचों ने हाथी को अंशों में जाना था। परिणामतः पाँचों हाथी के स्वरूप को लेकर परस्पर झगड़ने लगे। सब अपनी अपनी बात पर अड़े थे। इसी बीच एक आँखों वाला समझदार व्यक्ति वहाँ आया वह उनके विवाद का कारण समझकर बोला- भाईयों ! झगड़ते क्यों हो? तुम सब अज्ञानी हो, तुममें से किसी ने हाथी को पूर्ण नहीं जाना। हाथी के केवल एक अंश को जानकर उसी को पूर्ण हाथी समझ बैठे हो, जो तुम्हारे विवाद का कारण है। मैं तुम्हें