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अनेकान्त 62/3, जुलाई - सितम्बर 2009 हाथी का पूर्ण स्वरूप बताता हूँ ध्यान से सुनो-कान, सुण्ड, पैर, पेट और पूँछ आदि सभी अवयवों को मिलाने पर हाथी पूर्ण रूप होता है। कान पकड़ने वाले ने समझ लिया कि हाथी इतना ही और ऐसा ही है सूण्ड, पैर, पेट आदि पकड़ने वालों ने भी ऐसा ही समझा है। लेकिन तुम सब कूपमण्डूक के समान हो। कुएँ का मेंढक भी संसार को कुँए के समान समझता है। हाथी का स्वरूप भी केवल कान, पैर आदि ही नहीं है किन्तु कान, पैर सूड आदि अवयवों को मिला देने पर ही हाथी पूर्ण रूप बनता है । अन्ध अच्छी तरह समझ में आ गयी और अपनी एकान्त दृष्टि पर पश्चाताप हुआ और हाथी के स्वरूप का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर संतोष को प्राप्त हुए। आज पारिवारिक, सामाजिक, राजनैतिक तथा मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में एकान्त व संकीर्ण दृष्टि के कारण वाद-विवाद, क्लेश आदि की वृद्धि हो रही है क्योंकि एकान्तवादी व्यक्ति केवल अपनी ही बात पर आग्रह करता है जबकि अनेकान्तवादी अपनी बात के साथ दूसरों की बात भी सही है, इस नीति को अपनाता है। यदि संसार इस अनेकान्तवादी नीति को अपना ले तो सारे झगड़े ही समाप्त हो जायें ।
सन्दर्भ
1. जैनधर्म और दर्शन, मुनि प्रमाणसागर, पृ. 307
2. वीरोदय, 19/20-21
3. जयोदय,
26/79
4. जयोदय, 26/84
5. वीरोदय, 19/23, जयोदय, 26/85
6. जयोदय, 26/78
7. जयोदय, 26/81-82
8. वही, 26/87
9. वीरोदय, 19/2
10. वीरोदय, 19/3
11. सुदर्शनोदय, सर्ग 6/ दैशिक सौराष्ट्रयोराग:, तीसरा गीत, पृ. 91
12. जयोदय, 26/90
13. वही, 26/86
जे. एल. एन. इण्टर कॉलेज
रखापुरी, सठेड़ी, मुजफ्फरनगर
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