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अनेकान्त 62/3, जुलाई - सितम्बर 2009
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शिल्प का तो यह मनोहर उदाहरण है ही आत्माराधना का श्रेष्ठ केन्द्र भी है। यहाँ पर्वत
की ऊँचाईयाँ, नदियों की प्रवाहशीलता, वायु की शीतलता, बाह्य प्रकृति का अर्न्तजगत् के साथ एकत्र स्थापित करती है।
सिद्धवरकूट के पौद्गलिक पर्यावरण का कण कण अध्यात्म की सुरभि से सुवासित है। यह सिद्धों की तपोभूमि रही है। यहाँ केवल रेवा और कावेरी का संगम ही नहीं अपितु सिद्धत्व और पावनत्व का संगम है। अध्यात्म और धर्म का संगम है। घण्टानाद एवं पूजन की स्वरलहरियों का संगम है। पुरातत्व और कला का संगम है। वैदिक एवं श्रमण संस्कृति का संगम है। प्राकृतिक ओंकारमय यह स्थली सिद्धत्व की पर्याय है। सत्यम् शिवम् और सुन्दरम् की मनोरम अभिव्यक्ति है।
सन्दर्भः
1. आ. जिनसेन आदिपुराण 4/8 2. वादीभसिंह सूरि -क्षत्रचूड़ामणि 6/4 3. सुहावना सिद्धवरकूट-राजेन्द्र जैन 'महावीर' पृ.12, 4. मध्यप्रदेश का जैन शिल्प, नरेश कुमार पाठक पृ.36 5. भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ भाग-3 -बलभद्र जैन, पृ.319-20 6. सुहावना सिद्धवरकूट -राजेन्द्र जैन महावीर पृ.10 से 14
अ) "संवत....11 ऐकन ऐकनपै वैसाष मासे शुक्ल पक्षे तिथौ 9 गुरूवासरे मूलसंघे गणे बलात्कार श्री कुन्दकुन्दचारचारीय आमनाय तत् उपदेसात् श्री हेमचन्द्र असारीय नग्र सीदपुर. हूबड़ ग्याति लगूसा साषा भवेरज गोत्र साहाजि दयचन्दजी भारीया सुरीबाई बीजा दीच वषप
नीटाकमीनी।" भारत के दि. जैन, पं बलभद्र जैन पृ.322 आ) भारतीय दिगम्बर जैन अभिलेख और तीर्थ पश्चिम मध्यप्रदेश: 13 वी शती तक डॉ. कस्तूरचन्द्र जैन सुमन पृ-47 प्रकाशक - दिगम्बर जैन साहित्य संस्कृति संरक्षण समिति
दिल्ली 8. सिद्धवरकूट कतिपय तथ्य, श्री सूरजमल बोबरा, का लेख अर्हत्वचन, पृ. 33-36,
वर्ष 19, अक 3 जु. सि. 2007 9. भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ भाग-3 -बलभद्र जैन पृ. 321
- 'मयंक', ई.एच.37 स्कीम नं.54, इन्दौर,