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अनेकान्त 62/3, जुलाई - सितम्बर 2009
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मंदिर नं.3:- में संगमरमर से निर्मित सुन्दर छत्री है। जिसमें दो चक्री तथा दशकामकुमार के चरण चिह्न हैं। ___ मंदिर नं.4:- में श्वेतवर्णी संगमरमर से निर्मित भगवान बाहुबली की सवा सात फुट उत्तुंग प्रतिमा विराजमान है।
मंदिर नं.5:- में सफेद संगमरमर से निर्मित मानस्तंभ के ऊपर चौमुखी मंदिर में तीर्थकर महावीर की मनोज्ञ प्रतिमाएं स्थापित हैं। इस स्तंभ की दीवार पर नीचे पाषाण में आकर्षक चित्र भी उत्कीर्ण है।
मंदिर नं.6:- में सोलहवें तीर्थंकर श्री शांतिनाथजी की अष्टधातु निर्मित पद्मासन प्रतिमा है। इसके आसपास सिद्धवरकूट के मोक्षगामी दो चक्री और दस कामकुमार मुनियों की तपस्यारत अष्टधातु से निर्मित मनोहारी मूर्तियाँ स्थापित है। इस मंदिर की वेदी और शिखर पर अत्यन्त मनोहारी स्वर्णमयी चित्रकारी की गई है।
मंदिर नं.7:- में श्यामवर्णी पाषाण से निर्मित तीर्थकर पार्श्वनाथ की 2फुट 11इंच उन्नत पद्मासन प्रतिमा अतिशयकारी और मनमोहक है जो संवत् 1951 में भट्टारक महेन्द्रकीर्तिजी द्वारा प्रतिष्ठित है। यहाँ अखंड ज्योति व श्री क्षेत्रपालजी भी स्थापित है। ___ मंदिर नं. :- इसी परिसर में एक छोटा सा मंदिर है। इसमें देशी पाषाण की 1फुट 2इंच खड्गासन मुद्रा में श्री आदिनाथजी की प्रतिमा है तथा दो चक्री दस कामकुमार मुनियों के प्राचीन चरणचिह्न विराजमान है। संवत् 1951 में भट्टारक श्री महेन्द्रकीर्तिजी के समय प्रतिष्ठित अति प्राचीन तीर्थकर महवीर की खड्गासन प्रतिमा है। पार्श्व में श्री भगवान पद्मप्रभुजी तथा श्री मल्लिनाथजी पद्मासन प्रतिमाएं विराजित हैं। ___मंदिर नं.9:- में भगवन् महावीर की 4फुट उन्नत मूगिया वर्ण की खड्गासन प्रतिमा है। यह भी संवत् 1951 में ही प्रतिष्ठित है। इसी वेदी पर भूरे एवं श्वेतवर्णी पाषाण की श्री पद्मप्रभ एवं श्री मल्लिनाथ की प्रतिमाएं विराजमान है।
मंदिर नं.10:- में मूलनायक भगवान महावीर स्वामी की कृष्णवर्णी पाषाण से निर्मित पद्मासन अतिप्राचीन प्रतिमा है। इसके पादपीठ पर कोई लेख अंकित नहीं है। संभवत: यह खोज के समय भट्टारकजी को प्राप्त तथा संवत 1951 में प्रतिष्ठित हुई है इसके पार्श्व में तीर्थकर आदिनाथ तथा श्री चन्द्रप्रभजी कृष्णवर्णी पद्मासन मूर्तियाँ हैं।
मंदिर नं.11:- में मूल नायक श्री अजितनाथजी की 1फुट 6इंच श्वेतवर्णी पद्मासनस्थ प्रतिमा है पास में श्री चन्द्रप्रभजी की 9इंच उन्नत प्रतिमाएँ विराजमान है।
मंदिर नं.12:- में बड़े मंदिर के ऊपर के छत पर एक वेदी में जिसमें आदिनाथजी की संवत् 11 की कृष्णवर्णी पद्मासनस्थ अतिप्राचीन प्रतिमा है। इसकी चरणचौकी पर नागरी लिपि में लेख भी उत्कीर्ण है। वेदी में श्वेतवर्णी पद्मासन में तीर्थकर पार्श्वनाथ श्री चन्द्रप्रभु, श्री आदिनाथ और श्री पार्श्वनाथ की (फनरहित) प्रतिमाएँ हैं। इन मूर्तियों की