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अनेकान्त 62/3, जुलाई - सितम्बर 2009 रेवा नदी के पश्चिम में स्थित सिद्धवर कूट से दो चक्रवर्ती दस कामदेव तथा साढ़े तीन करोड़ मुनि तथा रावण के पुत्र मोक्षगामी हुए। अत: यह निर्वाणस्थली वन्दनीय है। ___ बोधप्राभृत की गाथा 27 की व्याख्या में भट्टारक श्रुतसागर ने क्षेत्र का नाम सिद्धकूट बताया है। भट्टारक गुणकीर्ति, विश्वभूषण आदि लेखकों ने भी सिद्धकूट के रूप में ही इसका उल्लेख किया है। साढ़े तीन करोड़ मुनियों का सिद्धिस्थान होने के कारण इस पर्वत-शिखर और क्षेत्र का नाम ही सिद्धवरकूट हो गया।
दो चक्रवर्ती श्री मघवा चक्रवर्ती व श्री सनतकुमार चक्रवर्ती हैं। दस कामकुमार के नाम इस प्रकार हैं:- श्री सनतकुमार, श्री वत्सराज, श्री कनकप्रभ, श्री मेघप्रभ, श्री विजयराज, श्री श्रीचन्द्र, श्री नलराज, श्री बलिराज, श्री वासुदेव तथा श्री जीवन्धर कुमार कामदेवा'
सिद्धवरकूट से प्राप्त सबसे प्राचीन मूर्तियों पर तेरहवीं से पन्द्रहवीं शताब्दी तक की तिथियाँ अंकित हैं। तीर्थकर चन्दप्रभ की मूर्ति की आधारशिला पर ई.स.1222 का लेख है।' ऐतिहासिक दृष्टि से काल के विषय में अद्यापि गहन शोध अपेक्षित है।
भट्टारक महेन्द्रकीर्तिजी ने संवत् 1935 में स्वप्न देखकर खोज की तो संवत् 1545 की तीर्थंकर चन्द्रप्रभ भगवान की मूर्ति तथा आदिनाथ भगवान की विक्रम संवत् 11 की मूर्ति प्राप्त हुई एवं विशाल खण्डित मंदिर परिसर दिखाई दिया। जीर्णोद्धार के पश्चात संवत् 1951 में प्रतिष्ठा द्वारा यह क्षेत्र प्रकाश में आया।
भट्टारकजी के अथक प्रयत्न, संतों की वाणी, धर्मानुरागियों और श्रेष्ठियों की आस्था और सतत प्रयासों से क्षेत्र का जीर्णोद्धार तथा निरंतर विकास होता रहा है। वर्तमान में यहाँ 13 मन्दिर, 1 कुण्ड, प्राचीन पाण्डुक शिला तथा महावीर वाटिका है। वर्तमान में प्रस्तावित योजनाओं में आचार्य श्री विद्यासागर हॉल तथा तेरह द्वीप एवं 458 चैत्यालय निर्माण क्रियाशील है। दर्शनक्रम के अनुसार मंदिरों का परिचय इस प्रकार है
मंदिर नं.1:- मंदिर में सफेद संगमरमर से निर्मित तीर्थकर नेमिनाथ की 1फुट 7 इंच उन्नत पद्यमासन् प्रतिमा है। इसकी प्रतिष्ठा संवत् 1951 में हुई। यहाँ अष्टधातु से निर्मित 1फुट 3इंच की आदि तीर्थंकर ऋषभदेव तथा तीर्थकर श्री चन्द्रप्रभ की मनोज्ञ प्रतिमाएँ विराजमान है। मंदिर में श्री गजकुमार, सुकुमाल मुनि तथा भगवान नेमिनाथ के वैराग्य के समय के आकर्षक चित्र भी बने हुए हैं।
मंदिर नं.2:- में तीन वेदियाँ है। मूल वेदी में श्री शांतिनाथ की पद्मासनस्थ श्वेत पाषाणमयी 3फुट 2इंच की प्रतिमा है तथा पास में कृष्णवर्णी श्री पार्श्वनाथ तथा श्वेतवर्णी श्री आदिनाथ की मनोहर प्रतिमा है। दूसरी वेदी में भगवान महावीर तथा तीसरी वेदी में भगवान बाहुबलि व मुनिसुव्रतनाथजी तथा चन्द्रप्रभ भगवान की आकर्षक प्रतिमाएँ हैं। इस मंदिर में शास्त्र भंडार है जिसमें आचार्य कुंद-कुंद का शास्त्र लिखते हुए का सुन्दर चित्र भी है।