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________________ अनेकान्त 62/3, जुलाई - सितम्बर 2009 रोचक है। वह न तो एकदम शास्त्रीय है और न आध्यात्मिक सिद्धियों और चमत्कारों से बोझिल, जिसका प्रत्यक्ष दर्शन उनके मोक्षमार्ग-प्रकाशक में होता है। संक्षिप्त वाक्य-रचना और तार्किक प्रतिपादन-शैली उनकी अपनी विशेषता है। डॉ. प्रेमप्रकाश गौतम के अनुसार "उनकी गद्य-शैली में उनके चिन्तक का चरित्र और तर्क का स्वभाव स्पष्ट झलकता है। एक आध्यात्मिक लेखक होते हुए भी उनकी गद्य-शैली में व्यक्तित्व का प्रक्षेप उनकी अपनी मौलिक विशेषता है। (राज. का जैन-साहित्य पृ.252) अपने कार्यो के माध्यम से वे अजर-अमर रहेंगे "साहित्य-सेवा तो घर फूंक तमाशा है" यह एक लोक-प्रचलित कहावत प्रसिद्ध है। पूर्वाचार्यो पर यह उक्ति लागू होती है अथवा नहीं यह कहना तो कठिन है किन्तु भारतीय साहित्य के हिन्दीकाल में ऐसा देखा जाता रहा है। टोडरमल के ऊपर तो वह कहावत शतशः लागू होती है। उन्हें साहित्य-सेवा का जो फल मिला, उसे इतिहास जानता है। उनकी मृत्यु संबन्धी दुर्घटना के स्मरण-मात्र से ही रोंगटे खड़े हो जाते है तथा सॉस सँधने लगती है। मानवता के दुर्भाग्य से उन्हें वही पुरस्कार मिला जो सहस्रों वर्ष पूर्व मानव-संस्कृति के महाविश्लेशक परमऋषि सुकरात, ईसा एवं नवयुग-निर्माता तथा उपेक्षितों, पीड़ितों दलितों और अमेरिका को गणतंत्र का रूप देने में प्राणपण से प्रयत्नशील अब्राहम लिंकन और राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी एवं मार्टिन लूथर किंग को मिला। वस्तुतः उनके जीवन की वही खरी परीक्षा भी थी और उसमें उन्होंने सर्वोपरि उत्तीर्णता प्राप्त की। आज ग्रह-नक्षत्रों के साथ उनकी दिव्यात्मा दैदीप्यमान है और सृष्टि के अन्त तक निष्पक्ष एवं निर्भीक विवेकीजन उन्हें भुला न सकेंगे। एक राष्ट्रकवि के अनुसार - He belongs to the ages अर्थात् “यावच्चन्द्रदिवाकरौ" उनका स्मरण किया जाता रहेगा। सन्दर्भ : 1. मोक्षमार्ग प्रकाशक (दिल्ली, 1950) पृ. 17 2. हजारी प्रसाद द्विवेदी कृत हिन्दी साहित्य, (दिल्ली, 1952) पृ. 364-65 3. हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, पृ. 180 4. मोक्षमार्ग प्रकाशक (दिल्ली, 1950) पृ. 368 5. मोक्षमार्ग प्रकाशक (दिल्ली, 1950) पृ. 368 6. मोक्षमार्ग प्रकाशक (दिल्ली, 1950) पृ. 368 7. मोक्षमार्ग प्रकाशक (दिल्ली, 1950) पृ. 369 8. मोक्षमार्ग प्रकाशक (दिल्ली, 1950) पृ. 369 9. मोक्षमार्ग प्रकाशक (दिल्ली, 1950) पृ. 270-271 - बी-5/40 सी सैक्टर-34 धवलगिरि, पो. नोएडा (उ.प्र.) 201301
SR No.538062
Book TitleAnekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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