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________________ अनेकान्त 62/3, जुलाई - सितम्बर 2009 सीखना सो संकलन, व्यवकलन, गुणाकार, भागहार, वर्ग, वर्गमूल, धन, धनमूल इनको परिकर्माष्टक कहिए है।" ___ लम्बी संख्या का भाग करना प्रायः कठिन होता है लेकिन पण्डितजी ने उसे हल करने के लिए एक नया गुर (सिद्धांत) ही बना दिया और सोदाहरण उसका विश्लेषण भी कर दिया। यथा- "भाज्य राशि के अंतादिक जेते अंकनि करि भाज राशि” प्रमाण वधता होइ तितने अंकरूप राशि कौं भाजक का भाग दीजिये। बहुरि जिस अंककरि भाजक कौं गुणें जाकौं भाग दीया था तामैं घटाइ अवशेष तहां लिख दीजिये अरवह पाया अंक जुदा लिख दीजिये। बहुरि जैठे भाज्य के अंक रहे तिनके अंतादि अंकनिकौं तैसें ही भाग देइ जो अंक आवै ताकौं तिस पाया अंक के आगें लिखिये। ऐसैं ही यावत्सर्व भाज्य के अंक निशेष होई तावत विधान करें तहां पाए अंकनिकरि जो प्रमाण आवै सो तहां भाग दीए जो राशि भया ताका लब्धराशि है ताकर प्रमाण जानना।" उक्त सिद्धान्त के स्पष्टीकरण के लिये उन्होंने एक उदाहरण दिया है, जैसे-8192 में 64 का भाग देना है। आधुनिक रीति से तो 8192 : 64 करने में जटिलता अधिक है। किन्तु पण्डितजी के सिद्धान्त के अनुसार भाज्य 8192 में से उसकी आदि की दो संख्या-81 में से भाजक 64 घटा दिया तब शेष रहा 1792 इस संख्या का आदि अंक 1 अलग लिख दीजिए। फिर 1792 की प्रथम तीन संख्याओं (अर्थात् 179) में भाजक 64 का भाग कर भजनफल 2 को उक्त 1 के साथ (अर्थात् 12) लिख दीजिये। शेष 51 बचा। उसे फल(2) के साथ लिखकर (512) पुनः भाजक का भाग दिया और पूर्वोक्त 12 के साथ इस भजनफल (8) को मिला देने से 129 संपूर्ण भजनफल हो गया। यथापण्डितजी की पद्धति नवीन प्रचलित पद्धति 8192 64 8192 128 64 ------- 1 179 64 ---- 12 128 179 5 Pror 64 ----128 उत्तर लब्धांक - 128 उत्तर- लब्धांक-128 राजस्थानी-हिन्दी गद्य के विकास में योगदान पं. टोडरमलजी एक ओर जैन आध्यात्मवाद के विश्लेषक थे, तो दूसरी ओर साहित्यिक गद्य-शैली के निर्माता भी। शास्त्रीय ग्रंथों के टीकाकार होते हुए भी उन्होंने हिन्दी गद्य-शैली के विकास में अद्भुत योगदान किया है। समकालीन परिस्थतियों में गद्य को आध्यात्मिक चिन्तन का माध्यम बनाना, साहित्यिक कौशल एवं अत्यन्त श्रमसाध्य कार्य था। उनकी गद्य-शैली लौकिक दृष्टान्तों से युक्त प्रश्नोत्तरी शैली वाली प्रवाहपूर्ण और
SR No.538062
Book TitleAnekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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