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________________ अनेकान्त 62/3, जुलाई - सितम्बर 2009 47 साग- पत्ती, चॉवल तथा सभी प्रकार के फलों पर निर्वाह करते हैं। वे किसी जीव को मारकर नहीं खाते और न अण्डे जैसी कोई चीज ही खाते है। सिर्फ मुसलमानों में कुर्बानी के नाम पर हिंसा होती है। (सन्मति संदेश 2/8/पृ.30) गोम्मटसार पूजा का रहस्य गोम्मटसार नामक ग्रंथ की पूजा पण्डितजी ने जिस तन्मयता के साथ लिखी, वह भी एक रहस्य है। उक्त पूजा के माध्यम से आचार्य - प्रवर ने गौतम गणधर एवं उनकी परवर्ती आचार्य - परंपरा, समस्त द्वादशांग वाणी आदि का भाव-विभोर होकर इतिहास - समन्वित स्तवन किया है। जिस प्रकार ओम् - "ॐ" के उच्चारण से पंच परमेष्ठी एवं सारे ज्ञान-विज्ञान का एक साथ स्मरण हो जाता है, पण्डित जी की गोम्मटसार के प्रति भी वही विराट कल्पना थी। गौरव ग्रन्थ- मोक्षमार्ग प्रकाशक "मोक्षमार्ग-प्रकाशक" पण्डितजी का स्वतंत्र ग्रंथ होते हुये भी उसमें जैन वाङ्मय का सार-तत्त्व निहित है। इस सबके अतिरिक्त भी आचार-विचार में व्याप्त शिथिलता, ढोंग, पाखण्ड आदि की तीव्र आलोचना एवं जैन सिद्धान्तों तथा दर्शन पर व्यर्थ के लगाये गये - लांछनों का समुचित उत्तर उसमें दिया गया है। यह ग्रंथ लिखते समय उनसे प्रश्न किया गया था कि पूर्वाचार्यों के बड़े-बड़े ग्रंथ उपलब्ध हैं ही, फिर इस ग्रंथ के लिखने की आपको क्या आवश्यकता आन पड़ी ? तब इसके उत्तर में पण्डितजी ने कहा था कि 'पूर्वाचार्यों के ग्रंथों को समझने के लिये प्रखर बुद्धि एवं भाषा, व्याकरण, न्याय, छंद, अलंकार आदि का ज्ञान आवश्यक है जो ऐसे हैं, वे तो उन्हें पड़ सकते हैं, किन्तु जो अल्पबुद्धि हैं, उनका प्रवेश उन ग्रंथों में सहज संभव नहीं। अतः उन्हीं मन्दगति सामान्यजनों के हितार्थ यह ग्रंथ लिखा जा रहा है।" सीधी-सादी, सरस, विवेचनात्मक गद्य शैली में लिखित एवं अत्यन्त लोकप्रिय उक्त मोक्षमार्ग प्रकाशक में निम्नलिखित नौ अधिकार है। यथा प्रथम अधिकार में आत्म-सुख-संतोष-प्राप्ति के हेतु तथा श्रमण संस्कृति, मूल आराध्य-अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं सर्वसाधु रूप पंच परमेष्ठी के स्वरूप का विशद् विवेचन किया गया है। दूसरे अधिकार में संसार की स्थिति का चित्रण, आत्मा एवं कर्म - सिद्वान्त का विवेचन, अष्टकर्मों के फलदान में निमित्तनैमित्तिक संबन्ध आदि का विवेचन। तीसरे अधिकार में संसार दुःख तथा मोक्ष सुख का का विशद विवेचन और उससे निवृत्ति के उपायों पर प्रकाश । चौथे अधिकार में मिध्यात्व का विशद विवेचन और उससे निवृत्ति के उपायों पर प्रकाश पांचवें अधिकार के वर्ण्य विषय का अध्ययन करने से पं. टोडरमलजी के ज्ञान-विज्ञान के गम्भीर अध्ययन मनन एवं चिन्तन तथा सार्थक तर्कणा - शक्ति का पता
SR No.538062
Book TitleAnekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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