________________
अनेकान्त 62/3, जुलाई - सितम्बर 2009 चलता है। उसमें विविध दार्शनिक एवं धार्मिक मान्यताओं की समीक्षा प्रस्तुत कर पण्डितजी ने अपनी अनेकान्त-दृष्टि का परिचय दिया है।
छठवें अधिकार में बतलाया गया है कि मोक्षाभिलाषियों के लिये मुक्ति-विरोधी-तत्त्वों से निरंतर दूर रहना चाहिये क्योंकि उनके सेवन से सत्य के दर्शन नहीं हो सकते।
सातवें अधिकार में जैनाभास, व्यवहाराभास के विवेचन के बाद तत्त्व एवं ज्ञान के स्वरूप का कथन किया गया है। रागादिभावों का घटना निर्जरा का कारण तथा रागादि भावों का होना ही बंध है। इस विषय का सुन्दर विवेचन किया गया है।
आठवें अधिकार में चतुर्विध अनुयोग-प्रथमानुयोग, चरणानुयोग, करणानुयोग एवं द्रव्यानुयोग के स्वरूप एवं उनके वर्ण्य-विषय का विवेचन।
नौवें अधिकार में सम्यक्त्व के अष्टांगों का मार्मिक विवेचन एवं मोक्ष-मार्ग का स्वरूप संक्षेप में कहा जाय तो मोक्षमार्ग-प्रकाशक संवेदनशील जिज्ञासुजनों के लिये एक ऐसा आकर्षक प्रभावक गुलदस्ता है, जिसमें सृष्टि-विद्या के प्रायः सभी मूल सिद्धांतों एवं दर्शन, अध्यात्म, आचार, भूगोल एवं खगोल संबंधी मान्यताओं को सीधी सादी सरल भाषा में प्रवाहपूर्ण गद्य-शैली में प्रस्तुत किया गया है।
कहीं-कहीं प्रासंगिक प्रश्नोत्तरों के माध्यम से वर्ण्य-विषय का सुन्दर प्रतिपादन किया गया है। इसकी लोकप्रियता का इसी से आभास मिलता है कि उसके दर्जनों संस्करण निकल चुके हैं। और यह कहावत प्रसिद्ध है कि कोई भी पण्डित जब तक मोक्षमार्ग-प्रकाशक का गहन अध्ययन नहीं कर लेता, तब तक उसका पाण्डित्य अधूरा ही रह जाता है। इस ग्रंथ के लिखने में उन्हें श्वे. एवं दिगम्बर जैनागमों, अनुआगम-साहित्य तथा वैदिक, बौद्ध, इस्लाम प्रभृति संप्रदायों के ग्रंथों का गहन अध्ययन करना पड़ा था। प्राप्त संदर्भो के अनुसार उन प्रयुक्त ग्रंथों की वर्गीकृत सूची निम्न प्रकार है - वैदिक-धर्म-ग्रंथ - 1. ऋग्वेद (मोक्षमार्ग प्रकाशक की पृ. 208) 9. ब्रह्मपुराण
- 163 2. यजुर्वेद - 208, 209 10. गणेशपुराण
- 205 3. छान्दोग्योपनिषद्
11. प्रभासपुराण
- 206 4. मुण्डकोपनिषद् 139
12. नारदपुराण (भवावतार-रहस्य) 5. कठोपनिषद् 139
13. काशी खण्ड
- 206 6. विष्णुपुराण - 148,163 14. मनुस्मृति
- 208 7. वायुपुराण
148 15. महाभारत
- 210 8. मत्स्यपुराण
- 149 16. हनुमन्नाटक
-204 17. दशावतार-चरित्र - 206 24. वैराग्यशतक
- 201 18. व्याससूत्र 1 - 205 25. नीतिशतक
- 282 19. भागवत पुराण - 163,164 26. दक्षिणामूर्तिसहस्रनाम
- 139
___ -207
- 203