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________________ अनेकान्त 62/3, जुलाई - सितम्बर 2009 45 जीवन-चरित 'अर्धकथानक" में अपनी अच्छी-बुरी सभी बातें विस्तार-पूर्वक लिखकर जिस प्रकार अपनी साहित्यिक-ईमानदारी का परिचय दिया था और साहित्य-जगत् का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था, उसी प्रकार पं. टोडरमल जी भी उसी श्रेणी के विश्वसनीय एवं मर्यादाप्रतिपालक प्रतिभा-पुत्र हैं। इस दिशा में वे नवीन पीढ़ियों के लिये आदर्श हैं, इसमें संदेह नहीं। यथोगाथा दिग-दिगन्त में समा गई सारा समाज पं. टोडरमल को अपना शिरोमणि मानता था और उनके उपदेशामृत का पान करते हुए लालायित रहता था, उनकी दैवी-प्रतिभा, एवं अगाध विद्वत्ता के प्रति अनन्य श्रद्धानिष्ठ समानधर्मी पं. रायमल्ल ने जयपुर में आयोजित इन्द्रध्वज-पूजा-विधान के समय सर्वत्र प्रेषित निमंत्रण-पत्र में उनके विषय में जो लिखा था, वह उसका एक प्रेरक उदाहरण है। वह अंश निम्न प्रकार है - “यहाँ घणां भायां अउर घणी वायां व्याकरण व गोम्मटसारजी की चर्चा का ज्ञान पाइये हैं। सारा ही विसैं भाईजी टोडरमलजी के ज्ञान का क्षयोपशम अलौकिक है जो गोम्मटसारादि ग्रंथों की संपूर्ण लाख श्लोक टीका विणाई और पाँच-सात ग्रंथों का टीका वणायवे का उपाय है। न्याय, व्याकरण, गणित, छंद, अलंकार आदि का ज्ञान पाइये हे। ऐसे पुरुष महन्त बुद्धि का धारक ईकाल विर्षे होना दुरलभ है। ता” यासू मिलें सर्व संदेह दूरि होय है। घणी लिखवा करि कहा आपणां हेत का वांछीक पुरुष शीघ्र आप यांसू मिलाप करो।" मुल्तान की जिज्ञासु जैन समाज के लिये लिखित उनकी "रहस्यपूर्ण चिट्ठी" की लोकप्रियता से विदित होता है कि उनके यश की सुरभि अतिशीघ्र ही जयपुर की परिधि लॉघकर पंचनद (अखण्ड-पंजाब) के अंचल में मुलतान (वर्तमान में पाकिस्तान) तक तथा वहाँ से मानों मौसमी मानसूनों के साथ ही पूर्व, उत्तर एवं दक्षिण-भारत तक पहुंच गई। वह सुरभि आज भी दिग-दिगन्त में व्याप्त है। टोडरमलकालीन जयपुर जैन सिद्धान्त भवन आरा (बिहार) के प्राच्य शास्त्र-भण्डार में सुरक्षित शान्तिनाथ-पुराण की एक पाण्डुलिपि-प्रशस्ति में पं. टोडरमल के कृतित्व एवं व्यक्तित्व को प्रकाशित करने वाला तथा उनके समकालीन राजस्थान के अन्य कुछ मनीषियों के उल्लेख इस प्रकार मिलते है। - वासी सिरि जयपुर तनौं टोडरमल क्रिपाल। ता प्रसंग को पाय के गहयौ सुपंथ विशाल। गोमटसारादिक तनैं सिद्धांतनि में सार। प्रवर बोध जिनके उर्दै महाकवि निरधार। फुनि ताके तट दूसरो राजमल्ल बुधराज। जुगल मल्ल जब ये जुरे और मल्ल किह काज? देश ढूंढाहउ आदि दै संबोधे बहुदेश। रचि रचि गिरंथ कठिन किये टोडरमल्ल महेस।
SR No.538062
Book TitleAnekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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