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अनेकान्त 62/3, जुलाई - सितम्बर 2009
आक्रांत लोक-मलिनील मशेषमांशु।
सूर्यांशु भिन्न मिव शार्वरमन्धकारम्!!7!! हे भगवन् ! आपके स्तवन से प्राणियों के जन्म-2 के संचित पाप शीघ्र नष्ट हो जाते है जिस प्रकार सूर्य की किरणों से रात्रि का समस्त अंधकार नष्ट हो जाता है।
नवें पद्य में मानतुंगाचार्य जी ने लिखा है कि हे भगवन् ! आपकी निर्दोष स्तुति की बात तो दूर है आपका पवित्र नाम उच्चारण मात्र से ही जीवों के पाप नष्ट हो जाते है। जैसे सूर्य भले ही दूर हो पर इसकी उज्ज्वल किरणों से ही सरोवर के कमल खिल जाते हैं।
आचार्य मानतुंग स्वामी ने स्तोत्र के अड़तीसवे काव्य से लेकर छियालीसवे काव्य तक जिनेन्द्र भक्ति को भयमुक्ति दायक बतलाया है। ये भय तिर्यंचकृत मनुष्यकृत एवं प्रकृति कृत अनेक प्रकार के होते हैं। मानतुंगाचार्य जी ने जिनका उल्लेख एक साथ सैंतालीसवें काव्य में करते हुए लिखा है कि-"मदोन्मत्त हाथी, सिंह, दावानल सर्प, युद्ध, समुद्र, जलोदर रोग, और कारागृह आदि से उत्पन्न हुआ भय भी जिनेन्द्र भक्ति से भयभीत होकर भाग जाता है।
इन कथनों से कहीं भी मानतुगाचार्य जी ने वीतरागी जिनेन्द्र प्रभु में कर्तृत्व आरोपित नहीं किया एवं न ही किसी प्रकार की बाँछा की है। समस्त सांसारिक आपत्तियाँ-विपत्तियाँ रोग, उपसर्ग, भय, असाता कर्मों के उदय से संसारी प्राणियों के जीवन में उपस्थित होते हैं। भगवन् जिनेन्द्र की गुणानुरागी भक्ति से शुभोपयोग द्वारा पुण्यास्रव होता है एवं असाता कर्म मंद पड़ जाते हैं एवं समस्त भय एवं आपत्तियों का स्वतः निवारण हो जाता है। धवल ग्रथ में भी लिखा है
जिणबिंब दसणेण निधत्त निकाचिदस्स
मिच्छतादि कम्म कला वस्स खय दंसणादो। (षटखंडागम पु. 6) अर्थात् जिन बिम्ब के दर्शन से निधत और निकाचित रूप भी मिथ्यात्वादि कर्म कलाप का क्षय देखा जाता है। भाव पाहुड़ में लिखा है
ते मे तिहुवण महिया सिद्धा सुद्धा णिरंजणा णिच्चा।
दिंतु बर भाव शुद्धिं दंसण णाणे चरित्ते य 163॥ अर्थात-जो नित्य है निरंजन है शुद्ध है तथा तीन लोक के द्वारा पूजनीय है, ऐसे सिद्ध भगवान ज्ञान-दर्शन और चरित्र में श्रेष्ठ उत्तम भाव की शुद्धता दें। थोस्सामि दण्डक में भी इसी प्रकार की भावना भायी गयी है
कित्तिय वंदिय महिया एदे लोगोत्तमा जिंणा सिद्धी।
आरोग्गणाणलाह दितु समाहिंच में बोहिं ॥7॥ अर्थात्-वचनों से कीर्तन किय गये, मन से वंदना किये गये और काय से पूजे गये ऐसे ये लोकोत्तम कृतकृत्य जिनेन्द्र मुझे परिपूर्ण ज्ञान समाधि और बोधि प्रदान करें।
जिनेन्द्र देव से प्रार्थना करते हुए आचार्य पद्म नंदी जी ने पद्मनंदी पंचविशतिका में लिखा है।