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अनेकान्त 62/3, जुलाई - सितम्बर 2009
31 की रचना के बाद इस स्तोत्र पर उत्तरवर्ती विद्वानों एवं कवियों ने लिखा है। यह इसकी उत्कृष्टता का एक जीता-जागता प्रमाण है। भक्तामर स्तोत्र विषय साहित्य में निम्न रचनाओं के नाम उल्लेखनीय है। रचनाएं
समय (1) क्रिया कलाप टीका
लगभग 1025 ई. (2) प्रभावक चरित
1277 ई. (3) प्रबंध चिंत्तामणि
1304 ई. (4) प्रबंधकथा कोष
1348 ई. (5) गुणाकर कृत भक्तामर वृत्ति कथा
1370 ई. (6) शुभशीलगणी कृत भक्तामर स्तोत्र माहात्म्य 1452 ई. (7) ब्र रायमल्ल कृत भक्तामर चरित्र
1610 ई. (8) भट्टारक विश्व भूषण कृत भक्तामर चरित्र 1665 ई. (9) विनोदी लाल जी कृत भक्तामर चरित्र कथा 1690 ई. (10) भट्टारक सुरेन्द्रभूषण कृत भक्तामर कथा 1740 ई. (11) नथमल विलाला एवं लालचंद्र कृत
भक्तामर स्तोत्र ऋद्धि मंत्र काव्य छन्द कथा 1772 ई. (12) जयचन्द्र छाबड़ा कृत भक्तामर चरित 1813 ई.
भक्तामर स्तोत्र के प्रत्येक पद्य के पाठ और उच्चारण के महत्त्व को स्पष्ट करने वाली अनेक कथायें भी प्राप्त होती है। गुणाकर ने 26 पद्यों के महत्त्व को दर्शाने वाली 26 कथायें भी दी है। उसके बाद के लेखकों ने अड़तालीस पद्यों की पृथक्-पृथक् कथायें लिखी है। इन कथाओं की प्रामाणिकता शोध का विषय हो सकती है। पर ये सभी कथायें निर्विवाद रूप से यह सिद्ध कर देती है कि समस्त जैन समुदाय अपने असाता कर्मों के अशुभ फल से बचने के लिए णमोकार मंत्र के बाद भक्तामर स्तोत्र पर ही श्रद्धा करता है।
भक्तामर स्तोत्र का केवल पाठ ही नहीं किया जाता है। बल्कि पूजा-स्तवन एवं विधान के रूप में भी इस स्तोत्र का एक विशिष्ट स्थान है। प्रत्येक पद्य के भावार्थ पर आधारित ऋद्धि मंत्रों एवं यंत्रों की रचना भी की गयी है। जिनके द्वारा भक्त जन अतिशय फल प्राप्त करते हैं।
भक्तामर स्तोत्र से जुड़े हुए पूजन एवं विधान साहित्य में भट्टारक सोमसेन का भक्तामरोद्यापन (1980 ई) भट्टारक ज्ञान भूषण जी कृत भक्तामरोद्यापन (1650 ई.) श्री भूषण शिष्य ज्ञानसागर कृत भक्तामर पूजन (1610 ई.) रत्नचन्द्र गणिकृत भक्तामर स्तव (1617 ई.) भट्टारक लक्ष्मीचंदजी के शिष्य ब्रह्मज्ञान सागर कृत भक्तामर स्तवन पूजन (1625 ई.) आदि के नाम उल्लेखनीय है।
सम्पूर्ण संस्कृत भक्ति काव्यों में भक्तामर स्तोत्र एक मात्र ऐसा स्तोत्र है जिसे सर्वाधि क भाषाओं में अनुवादित किया गया है। इस स्तोत्र का सर्वाधिक प्राचीन एवं प्रचारित हिन्दी अनुवाद पांडे हेमराज जी द्वारा 1652 ई. में किया गया था। इसके बाद इस अनुपम स्तोत्र