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________________ अनेकान्त 62/3, जुलाई - सितम्बर 2009 की थी। इस भक्तिमय संस्कृत काव्य के प्रभाव से कोठरियों के ताले एवं साकलें टूट गयीं। आचार्य मानतुंग बंधन मुक्त हो गये। इस चमत्कारिक घटना से प्रभावित होकर राजा एवं प्रजा मुनिराज के चरणों में नम्री भूत हो गयी एवं जैन धर्म की अपूर्व प्रभावना हुई। उक्त जन सामान्य की मान्यता का समर्थन अनेक पूर्ववर्ती लेखकों ने अपनी-2 रचनाओं में किया है। इन लेखकों में कुछ प्रमुख लेखकों के नाम एवं उनकी रचनाओं के नाम इस प्रकार है। (1) श्वेताम्बराचार्य प्रभाचन्द्र सूरि ने 1277 ई. में लिखे गये 'प्रभावक चरित' नामक ग्रंथ में इसी प्रकार की घटना उल्लेख किया है। (2) मेरुतुंग ने 1304 ई. में लिखे गये अपने ग्रंथ 'प्रबन्ध चिन्तामणि' में भी इसी घटना का उल्लेख किया है। (3) गुणाकर सूरि ने 1370 ई. में लिखे गये भक्तामर स्तोत्र वृत्ति नामक शास्त्र में भी इसी प्रकार की घटना का वर्णन किया गया है। (4) 1610 ई. में ब्र रायमल्ल वर्णी द्वारा लिखे गये भक्तामर स्तोत्र वृत्ति में कथावतार के रूप में इसी घटना का वर्णन है। (5) 1665 ई. में भट्टारक विश्व भूषण कृत भक्तामरचरित में भी इसी प्रकार की घटना का वर्णन किया गया है। अनेक आधुनिक कवियों एवं विद्वानों ने भी भक्तामर स्तोत्र की रचना के पीछे इसी प्रकार घटना का उल्लेख किया है। इन विद्वानों में कवि विनोदी लाल, भट्टारक सुरेन्द्र भूषण, नथमल बिलाला जयछंद छाबड़ा आदि कई विद्वानों के नाम उल्लेखनीय है। उपर्युक्त सभी पूर्ववर्ती विद्वानों ने अपने-2 ग्रंथों में भक्तामर स्तोत्र से जुड़ी हुई जिस कथा का वर्णन किया है, उसकी विषय वस्तु समान है पर उनमें पात्रों के नाम, घटना काल एवं घटना स्थल में भिन्नता दिखाई देती है। इसके पीछे क्या कारण रहा होगा यह विचारणीय विषय है। भक्तामर स्तोत्र की रचना के पीछे की घटना एवं परिस्थिति पर दिगम्बराचार्य प्रभाचन्द्र ने ग्यारहवीं शताब्दी में क्रिया कलाप ग्रन्थ की टीका की उत्थानिका में लिखा है। 'मानतुंग नामक: श्वेताम्बरो महाकवि निर्ग्रन्थाचार्यवर्यैरपनीतमहाव्याधिप्रतिपन्न निर्ग्रथमार्गो भगवन् कि क्रियतामिति ब्रु वाणो भगवतः परमात्मनो गुणगणं स्तोत्रं बिधीयता मित्यादिष्टः भक्तामर इत्यादि।" अर्थात् मानतुंग नामक श्वेताम्बर महाकवि को एक दिगम्बराचार्य ने महाव्याधि से मुक्त कर दिया तो उसने दिगम्बर मार्ग ग्रहण कर लिया और पूछा कि भगवन्! अब मैं क्या करूँ? आचार्य ने आदेश दिया कि परमात्मा के गुणों को गूंथ कर स्तोत्र की रचना करो। जिसके फलस्वरूप मानतुंग मुनि ने भक्तामर स्तोत्र की रचना की। भक्तामर सम्बन्धी प्राप्त साहित्य-संस्कृत भाषा में रचित संपूर्ण भक्ति काव्यों के इतिहास में किसी स्तोत्र पर इतना साहित्य नहीं लिखा गया जितना साहित्य भक्तामर स्तोत्र
SR No.538062
Book TitleAnekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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