SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 62/3, जुलाई - सितम्बर 2009 (15) पं. आशाधर कृत (16) पद्मनंदीभट्टारककृत (17) भागेन्दुजी कृत सहस्रनाम स्तोत्र जीरापल्ली पार्श्वनाथ स्तोत्र महावीराष्टक 12वीं सदी 14वीं सदी 19वीं सदी 29 भक्तामर स्तोत्र की प्राचीनता - भक्तामर स्तोत्र एक अत्यंत प्राचीन संस्कृत भक्ति काव्य है। भक्तामर स्तोत्र के रचनाकाल पर विद्वानों में मतभेद है। इसका कारण यह है कि श्री भक्तामर स्तोत्र के रचयिता आ. मानतुंग के काल का निर्धारण नहीं हो पाया है। विद्वानों में आचार्य मानतुंग के समय निर्धारण को लेकर परस्पर विरोधो विचारधारायें दिखाई देती है। कुछ विद्वानों ने आचार्य मानतुंग को सम्राट हर्ष के समकालीन माना है, विद्वानों का एक समुदाय आ. मानतुंग को महाराज भोज के समकालीन मानता है। आधुनिक विद्वानों ने गहन शोध के उपरांत यह निष्कर्ष निकाला है कि आचार्य मानतुंग सम्राट् हर्ष के समकालीन थे। आ. मानतुंग को सम्राट् हर्ष के समकालीन मानने वालों में संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध विद्वान डॉ. ए.बी. कीथ ने लिखा है कि "आचार्य मानतुंग के स्तोत्र से जुड़ी हुई कथा में जिन कोठरियों के ताले एवं पाशबद्धता का वर्णन किया गया है वे संसार बन्ध न का रूपक है। इस प्रकार की रूपक विधा का उपयोग छठी एवं सातवीं शताब्दी के विद्वानों के काव्य संग्रहों में दिखाई देता है।" सुप्रसिद्ध इतिहासकार पं. गौरीशंकर हीराचंद्र ओझा ने अपने "सिरोही का इतिहास " नामक ग्रंथ में आ. मानतुंग का समय हर्ष कालीन माना है। प्रसिद्ध विद्वान डॉ॰ नेमिचंद्र जी शास्त्री एवं डा. ज्योति प्रसाद जी ने भी विभिन्न संदर्भों एवं प्रमाणों से आचार्य मानतुंग का समय सम्राट् हर्ष के समकालीन निर्धारित किया है। सम्राट् हर्ष का राज्यभिषेक ईस्वी सन 608 में हुआ था अतः उपर्युक्त विद्वानों के निष्कर्षो से आ. मानतुंग का समय सातवीं शताब्दी माना जाना चाहिए। अनेक विद्वानों ने भक्तामर स्तोत्र की काव्य शैली के अध्ययन के उपरांत उनकों मयूर, बाण, धनंजय आदि सुप्रसिद्ध कवियों के समकालीन माना है। इतिहासकारों ने महाकवि बाण, धनंजय, मयूर को सातवीं शताब्दी का कवि माना है। आचार्य मानतुंग को चाहे सम्राट् हर्ष के समकालीन माना जाये या ग्यारहवी सदी के राजा भोज के समकालीन माना जाय लेकिन किसी भी धारणा के पुष्ट होने पर इस उत्कृष्ट भक्ति काव्य की श्रेष्ठता एवं उत्कृष्टता का अवमूल्यन नहीं होता। भक्तामर स्तोत्र का अभ्युदय - यह तो निर्विवाद है कि भक्तामर स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग जी ने अपनी लेखनी से की थी। उन घटनाओं एवं परिस्थितियों को लेकर विद्वानों में मतभेद है जिन घटनाओं एवं परिस्थितियों ने इस कालजयी कृति को जन्म दिया था। जन सामान्य में भक्तामर स्तोत्र की रचना के पीछे यह मान्यता है कि किसी राजा के द्वारा आचार्य मानतुंग को सांकलों से जकड़कर किसी ऐसी कोठरी में बंद कर दिया गया जिसमें अड़तालीस दरवाजे थे और प्रत्येक दरवाजे पर ताला लगा दिया गया। आचार्य मानतुंग ने इस विषम परिस्थिति में जिन धर्म को प्रभावना हेतु भगवान् जिनेन्द्र की भक्ति में तल्लीन होकर प्रथम तीर्थकर श्री ऋषभदेव की स्तुति करते हुए भक्तामर स्तोत्र की रचना
SR No.538062
Book TitleAnekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy