________________
भक्ति का उत्कृष्ट संस्कृत काव्य-भक्तामर स्तोत्र
पंकज कुमार जैन
भक्तामरस्तोत्र समस्त भारतीय संस्कृत-काव्य साहित्य में सर्वोत्कृष्ट भक्ति काव्य है। आचार्य मानतुंग विरचित इस सर्वोत्कृष्ट भक्ति-काव्य में भक्ति, दर्शन एवं काव्य की त्रिवेणी एक साथ प्रवाहित होती है।
जैन स्तोत्र साहित्य में जैनाचार्यों ने भगवान् जिनेन्द्र की स्तुति करते हुए शताधिक भक्ति-स्तोत्रों की रचना की है, लेकिन भक्तामर स्तोत्र ने जिस प्रतिष्ठा, गौरव एवं प्रसिद्धि को प्राप्त किया है उतनी प्रतिष्ठा एवं प्रसिद्धि किसी दूसरे स्तोत्र को प्राप्त नहीं हुई है। एक ओर जहाँ जैन समुदाय के अधिकांश लोगों को भक्तामर स्तोत्र पूर्ण रूपेण कंठस्थ है वहीं दूसरे ओर अन्य भक्ति काव्यों के नाम भी अधिकांश लोगों को याद नहीं हैं। भक्तामर स्तोत्र की सर्वोत्कृष्टता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है?
संस्कृत भक्ति काव्यों के इतिहास में अनेक भक्ति काव्यों के नाम प्राप्त होते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख संस्कृत भक्ति काव्यों के नाम इस प्रकार है। आचार्य काव्य
समय (1) आ० समंतभद्र स्वामी देवागम स्तोत्र, स्वयंभू स्तोत्र 2वीं शती ई.
द्वारा विरचित जिन स्तुति शतक (स्तुति विद्या) (2) आचार्य पूज्यपाद स्वामी शान्त्यष्टक, सरस्वती-स्तोत्र 5वीं शती ई.
द्वारा विरचित दश-भक्तिः (3) आ. सिद्धसेनकृत कल्याण मंदिर स्तोत्र 6वीं शती ई. (4) आ. पात्रकेशरीकृत पात्र केशरी स्तोत्र
6वीं शती ई. (5) आ. मानतुंगकृत भक्तामर स्तोत्र
7वीं शती ई. (6) आ. अकलंककृत अकलंकाष्टक
7वीं शती ई. (7) कवि धनंजयकृत विषापहार स्तोत्र
7वीं शती ई. (8) आ. विद्यानंदकृत श्रीपुर पार्श्वनाथ स्तोत्र 8वीं शती ई. (9) आ. जिनसेनस्वामीकृत श्री जिन सहस्रनाम स्तोत्र 9वीं शती ई. (10) गोल्लाचार्य भूपालकृत भूपाल चतुविशतिका लगभग 975 ई. (11) आ. वादिराजकृत एकीभाव स्तोत्र
1025 ई. (12) आ. इंद्रनंदीकृत पार्श्वनाथ स्तोत्र
1050 ई. (13) आ. वसुनंदीकृत जिनशतक स्तोत्र
11वीं सदी (14) श्वे. आ. हेमचंद्रकृत वीतराग स्तोत्र
11वीं सदी