SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थ सिद्ध्युपाय में वर्णित निश्चय और व्यवहार नय डॉ. अशोकुमार जैन जीवादि तत्त्व अनेकान्तात्मक हैं इसलिए जिनेन्द्रदेव ने उनकी प्ररूपणा निश्चय और व्यवहारनयों के आश्रय से की है। गुरु भी शिष्यों के अज्ञान की निवृत्ति के लिए निश्चय और व्यवहारनयों का अवलम्बन कर वस्तु स्वरूप का विवेचन करते हैं जैसा कि आचार्य अमृतचन्द्र ने लिखा है। मुख्योपाचाविवरण-निरस्तदुस्तरविनेयदुर्बोधाः। व्यवहारनिश्चयज्ञाः प्रवर्तयन्ते जगति तीर्थम्॥ अर्थात् निश्चय और व्यवहार के ज्ञाता गुरु मुख्य विवरण (द्रव्याश्रित या मूलाश्रित कथन) तथा उपचार विवरण (पर्यायाश्रित कथन) द्वारा शिष्यों के दुर्निवार अज्ञान को मिटाकर जगत् में धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करते हैं। तत्त्वार्थवार्तिककार ने लक्षण की परिभाषा देते हुए लिखा है। 'व्यतिकीर्ण-वस्तुव्यावृतिहेतुर्लक्षणम्' अर्थात् परस्पर सम्मिलित वस्तुओं में से किसी एक वस्तु को अलग करने वाले हेतु (चिंतन) को लक्षण कहते हैं। नय की परिभाषा इस प्रकार है- 'प्रमाणप्रकाशितार्थविशेषप्ररूपको नयः' अर्थात् प्रमाण प्रकाशित अर्थ विशेष प्ररूप नय है। लघीयस्त्रय में 'नयो ज्ञातुरभिप्राय:' अर्थात् ज्ञाता का अभिप्राय नय है। अध्यात्मशास्त्र में नयों के निश्चय और व्यवहार-ये दो भेद प्रसिद्ध हैं। आत्मख्याति में आचार्य अमृतचन्द्र ने परिभाषित करते हुए लिखा है। 'आत्माश्रितो निश्चयः पराश्रितो व्यवहार नयः' अर्थात् आत्माश्रित कथन को निश्चय और पराश्रित कथन को व्यवहार कहते हैं। आचार्य देवसेन ने 'अभेदानुपचारितया वस्तु निश्चीयत इति निश्चयः' अर्थात् अभेद और अनुपचारता से जो नय वस्तु का निश्चय करे वह निश्चयनय है। "भेदोपचारितया वस्तु व्यवह्रियत इति व्यवहारः" अर्थात् जो नय भेद ओर उपचार से वस्तु का व्यवहार करता है वह व्यवहार नय है।' अध्यात्म में निश्चय और व्यवहार की प्रक्रिया का विशेष महत्व है। इसका कारण है कि संसार के सभी प्राणी स्वकीय वास्तविक स्थिति से अनभिज्ञ हो रहे हैं। जैसाकि पुरुषार्थ सिद्धयुपाय ग्रन्थ में लिखा है निश्चयमिह भूतार्थ व्यवहारं वर्णयन्त्यभूतार्थम्। भूतार्थबोधविमुखः प्रायः सर्वोऽपि संसारः।।'
SR No.538062
Book TitleAnekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy