SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 62/3, जुलाई-सितम्बर 2009 सन्दर्भ: 1. सदसन्नित्यानित्यादिसर्वथैकान्तप्रतिक्षेपलक्षणाऽनेकान्तः। अष्टशती, अष्टसहस्री, पृष्ठ-286 2. यदेव तत् तदेव अतत्, यदेवैकं तदेवानेकम्, सदेव सत् मदेवासत्, यदेव नित्यं तदेवानित्यं, इत्येकवस्तुवस्तुत्वनिष्पादकपरस्परविरुद्धशक्तिद्वय प्रकाशनमनेकान्तः। समयसार आत्मख्याति टीका, स्याद्वादअधिकार 3. गुणगुण्यादिसंज्ञादिभेदात् भेदस्वभावः। आलाप पद्धति सूत्र-112 4. स्वद्रव्यचतुष्टयापेक्षया गुणाः परस्परस्वभावाः भवन्ति। वही, सूत्र-119 5. द्रव्याण्यपि भवन्ति। वही; सूत्र-120 6. 'जैन दर्शन में द्रव्य गुण सम्बन्ध', परामर्श, जनवरी-अप्रैल, सूत्र-1999 7. प्रमाणप्रकाशितार्थविशेषप्ररूपको नमः, तत्त्वार्थ वार्तिक, पृष्ठ-94 8. प्रमाण प्रभवो नयः। विचारो निर्णयोपायः परीक्षेत्यवगम्यताम्। सिद्धि विनिश्चय 10/3 9. नयो ज्ञातुरभिप्रायोयुक्तितोऽर्थपरिग्रहः। लघीयस्त्रय, कारिका 52 10. तत्त्वार्थ वार्तिक, पृष्ठ-33 11. सिद्धिविनिश्चय टीका, पृष्ठ-667 12. तत्त्वार्थ वार्तिक, पृष्ठ-33 13. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक;, पृष्ठ-118 14. निरपेक्षा नया मिथ्या सापेक्षा वस्तु तेऽर्थकृत-। आप्तमीमांसा, श्लोक 108 15. स्याद्वादप्रविभक्तार्थविशेषव्यजंको नयः। आप्तमीमांसा, श्लोक-103 16. अत्र सर्वथात्वनिषेधकोऽनेकान्तद्योतक कथंचित् अर्थे स्यात् शब्दो निपातः। पंचास्तिकाय संग्रह, पृष्ठ-32-33 17. वाक्यीषु अनेकान्तद्योती गम्यं प्रति विशेषण। स्यात् निपातो ,पृष्ठ 103, आप्तमीमांसा 18. स्याद्वादः सर्वधैकान्तव्यागात् किंवृतचिद्विधिाः। आप्तीमीमांसा श्लोक 104 पूर्वार्द्ध 19. अष्टसहस्री;, पृष्ठ-289 - प्राध्यापिका, दर्शनशास्त्र राजकीय महाविद्यालय, अजमेर (राज.) पाठकों से अनुरोध है कि आपको अनेकान्त पत्रिका में छपे लेख कैसे लगे अपने सुझाव और टिप्पणी से अवगत करावे ताकि हम उसे पाठकीय प्रतिक्रिया के अन्तर्गत प्रकाशित कर सके। वीर सेवा मंदिर (जैन दर्शन शोध संस्थान) के पुस्तकालय का डिजीटलाईजेश्न का कार्य चल रहा है, जिसके अन्तर्गत आगम, प्राचीन हस्तलिखित शास्त्रों, जैन शोध पत्रों, जैन संस्कृति के प्रचीन चित्रों इत्यादि को सुरक्षित किया जा रहा हैं। सुधी पाठकों से अनुरोध है कि यदि उनके पास या निकटस्थ मन्दिरजी में इस प्रकार की कोई सामग्री प्राप्त हो तो संस्था पते व ई मेल पर भेजकर या सूचना प्रदानकर प्राचीन धरोहरों को सुरक्षित करने में सहयोग करें। Scanning के पश्चात् उनको वापस भेज दिया जाएगा।
SR No.538062
Book TitleAnekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy