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________________ अनेकान्त 62/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2009 था, उससे ही दुनिया में व्याप्त असंतोष और संघर्ष को समाप्त किया जा सकता है। ___महात्मा गांधी ने अहिंसा के सकारात्मक प्रयोग करके, रक्त-विहीन क्रांति के सहारे, अपने देश का स्वाधीन कराने का अनोखा काम, अभी हमारे सामने ही संपन्न किया है इसी प्रकार अनेक महापुरुषों ने हिंसा-रहित जीवन जी कर यह भी चरितार्थ कर दिया है कि अहिंसा अव्यवहारिक नहीं है। वह पूर्णतः व्यावहारिक जीवन पद्धति है। वह एक निष्पाप, निराकुल, संतुष्ट और अखण्ड जीवन जीने की कला है। अहिंसा में इतनी सामर्थ्य है कि वह विकास से दहकते हुए वित्त में समता और शान्ति के फूल खिला सकती है। आज विश्व अन्यमनस्कता से ही सही, परंतु निराशा एवं घोर घुटन की ओर बढ़ता जा रहा है। ऐसे में आवश्यकता है-एक "खुले विश्व" की, जिसमें विज्ञान की प्रगति और अहिंसा का पुट हो। मानव जाति का अस्तित्व विज्ञान और अहिंसा के आपसी अनुपूरक सिद्धांत पर टिका ही है। बड़ी से बड़ी वैज्ञानिक गतिविधियाँ भी मनुष्य को मनुष्य माने बगैर संभव नहीं होती और यही मान्यता नैतिक मूल्यों को जन्म देती है इन्हीं नैतिक मूल्यों की संरक्षा एवं सुरक्षा हेतु हमें अहिंसा की आवश्यकता है। जब तक मनुष्य अहिंसा को एक बुनियादी मानव मूल्य के रूप में स्वीकार नहीं कर लेता तब तक विनाशकारी संघर्ष और शोषण-दमन से कोई बचाव नहीं है। भारतीय परंपरा इस बात को पहचानती है कि सृष्टि की एकता की अनुभूति का प्रतिफलन सृष्टि मात्र के प्रति अहिंसा के व्यवहार में ही हो सकता है क्योंकि स्वार्थों की टकराहट भी तब घृणा और प्रतिशोध को नहीं विकसित होने देगी जो हिंसा के प्रेरक कारण है। भारतीय परंपरा इस बात को पहचानती है कि अहिंसा ही सर्वोच्च धर्म, सर्वोच्च तप ओर सर्वोच्च सत्य है और इसी से बाकी सब गुणों का जन्म होता है। सामाजिक व्यवस्था के केन्द्रीय आधार के रूप में अहिंसा को स्वीकार करने का अर्थ है एक शोषण विहीन समता मूलक समाज की स्थापना, जिसमें न केवल रंग, जाति, लिंग, भाषा, संप्रदाय और राजनीतिक-आर्थिक ताकत के आधार पर अन्य के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार न किया जा सके, बल्कि प्रत्येक मनुष्य की अंतर्निहित सर्जनात्मकता को अभिव्यक्ति के तमाम अवसर मिल सके। ___ अहिंसा भारतीय संस्कृति की बुनियाद है जिसकी अनुपस्थिति में न तो उसकी पहचान बनती है और न ही अस्मिता। जैन दृष्टि में अहिंसा सर्वोपरि है; वह परम धर्म है अर्थात् धर्मों का धर्म है इस संदर्भ में हमें यह भी जानना चाहिए कि अहिंसा का अर्थ हिंसा की सर्वथा संपूर्ण अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि उसके दबाव को व्यक्ति और समाज के जीवन में से क्रमशः घटाते जाना है। हिसा आज अत्यन्त व्यवस्थित, संगठित, समन्वित और वाणिज्यिक मुद्रा में हमारे सामने है तथा उसमें न केवल युद्धों मे अपितु हमारे खानपान, रहन-सहन में भी खतरनाक घुसपेठ कर ली है, इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि हम अहिंसा की शक्ति को रोजमर्रा के जीवन में प्रकट करें और हर बिन्दु पर क्रूरता, बर्बरता के दैत्य को पराजित करें।
SR No.538062
Book TitleAnekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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