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________________ 86 अनेकान्त 62/4, अक्टूबरर-दिसम्बर 2009 षटकाय जीव न हनन तैं सब विध दरब-हिंसा टरी, रागादि भाव निवारतैं हिंसा न भावित अवतरी ' इससे एक तथ्य यह भी प्रगट होता है कि अपने मन की मलिनता के कारण हम ऐसे अनगिनत पापों का फल भोगते हैं, जो हमने कभी किये ही नहीं होते। केवल चित्त की चंचलता के कारण, और राग-द्वेष की तीव्रता के कारण, तरह-तरह के कुत्सित विचार हमारे मन में उठते रहते हैं। उनके दुखद परिणाम भोगने के लिये हम मजबूरर हैं। हिंसायामविरमणं हिंसापरिणमनमपि भवति हिंसा । तस्मात्प्रमत्तयोगे प्राणव्यपरोपणं नित्यम्।' अर्थात् हिंसा में विरक्त न होना हिंसा है और हिंसा रूप परिणमना भी हिंसा होती है। इसलिए प्रमाद के योग में निरंतर प्राण घात का सद्भाव है। - जैन दार्शनिकों ने अल्पतम हिंसा वाली जीवन पद्धति का आविष्कार किया है उन्होंने व्यावहारिक ढंग से वर्गीकरण करके हिंसा के चार भेद किये है: 1. संकल्पी - हिंसा 3. उद्योगी-हिंसा 2 आरम्भी-हिंसा 4. विरोधी हिंसा अहिंसा से व्यक्ति का जीवन निष्पाप बनता है, और प्राणि - मात्र को अभय का आश्वासन मिलता है। इस अवस्था से प्रकृति के संतुलन को बनाये रखने से भी सहायता मिलती है पर्यावरण को संरक्षण मिलता है, इसलिये तो संतों ने मनुष्य के संयत आचरण को जीव मात्र के लिये कल्याणकारी कहा है। अहिंसा का अर्थ कायरता नहीं है जीवन से पलायन भर अहिंसा का उद्देश्य नहीं है अहिंसा जीवन को व्यावहारिक और संतुलित बनाते हुए स्व और पर के घात से बचने का उपाय है। मानव में मानवता की प्रतिष्ठा का उपाय अहिंसा है। अहिंसा में विश्वास रखने वालों को और पाप से बचने की अभिलाषा रखने वालों का पशु-वध ओर मांस भक्षण से बचना चाहिए। मांस-मछली, अण्डा और मदिरा, तामसिक आहार कहे गये हैं। इनके सेवन से आचरण में तामसिक वृत्तियों का ही प्रादुर्भाव होता रहता है। आज के परमाणविक युग में अहिंसा के बिना मानव जाति का अस्तित्व ही संभव नहीं जान पड़ता। स्वामी घनानंद द्वारा लिखित पुस्तक " श्री रामकृष्ण और उनके अनोखे संदेश " के प्राक्कथन में अर्नाल्ड टॉयनबी ने लिखा है- मानव इतिहास में आज के भयावह क्षणों में मानव के अस्तित्व की बचाए रखने का एक मात्र उपाय "अहिंसा" का सिद्धांत ही जान पड़ता है। अशोक, रामकृष्ण ओर गांधी के बहुमूल्य सुझावों का अनुपालन करके ही संसार को विनाश से बचा सकते हैं। प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री अलबर्ट आईन्सटीन ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा था- गांधी ने भारत को जिस अहिंसा के द्वारा आजाद कराया
SR No.538062
Book TitleAnekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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