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अनेकान्त 62/4, अक्टूबर-दिसम्बर2009
'पुष्पों से पूजा करने वाला मनुष्य कमल के समान सुन्दर मुखवाला, तरुणीजनों के नयनों से और पुष्पों की उत्तम मालाओं के समूह से समर्चित देह वाला कामदेव होता है। ___'नैवेद्य से पूजा करने वाला मनुष्य, सद्भावों के योग से उत्पन्न हुए केवल ज्ञानरूपी प्रदीप के तेज से समस्त जीवद्रव्यादि तत्त्वों के रहस्य को प्रकाशित करने वाला अर्थात् केवल ज्ञानी होता है।'43 _ 'दीपों से पूजा करने वाला मनुष्य, सद्भावों से उत्पन्न हुए केवल ज्ञानरूपी प्रदीप के तेज से समस्त जीवद्रव्यादि तत्त्वों के रहस्य को प्रकाशित करने वाला अर्थात् केवल ज्ञानी होता है। ___ 'धूप से पूजा करने वाला मनुष्य चन्द्रमा के समान धवल कीर्ति से जगत्य को धवल करने वाला अर्थात् त्रैलोक्यव्यापी यशवाला होता है। फलों से पूजा करने वाला मनुष्य परम निर्वाण के सुख रूप फल पाने वाला होता है।'45 ___'जिन मंदिर में घण्टा समर्पण करने वाला मनुष्य घण्टाओं के शब्दों से व्याप्त, श्रेष्ठ विमानों में सुर-समूह से सेवित होकर प्रवर अप्सराओं के मध्य में क्रीड़ा करता है।'46
'जिन मंदिर में छत्र प्रदान करने से मनुष्य शत्रुरहित होकर पृथिवी को एक छत्र भोगता है तथा चमरों के दान से चमरों के समूहों द्वारा परिवीजित किया जाता है, अर्थात् उसके ऊपर चमर ढोरे जाते हैं। 47 _ 'जिन भगवान के अभिषेक करने के फल से मनुष्य सुदर्शन मेरु के ऊपर क्षीरसागर के जल से सुरेन्द्र प्रमुख देवों के द्वारा भक्ति के साथ अभिषिक्त किया जाता है। 48 _ 'जिन मंदिर में विजय पताकाओं के देने से मनुष्य संग्राम के मध्य विजयी होता है। तथा षटखण्डररूप निष्प्रतिपक्ष स्वामी और यशस्वी होता है। 49 और अन्त में आचार्य लिखते हैं कि 'अधिक कहने से क्या लाभ है, तीनों ही लोकों में जो कुछ भी सुख है, वह सब पूजा के फल से प्रापत होता है, इसमें कोई संदेह नही है।'50 पूजा-विधि
उपलब्ध दिगम्बर जैन साहित्य मे पूजन विधि का अनुमानतः विस्तृत विवेचन करने वाले आचार्य सोमदेव प्रतीत होते हैं। आचार्य सोमदेव ने 'उपासकाध्ययन' में पूजा की विधि का विस्तार पूर्वक विवेचन किया है।
आचार्य सोमदेव के पश्चात् होने वाले ग्रंथकारों में आचार्य वसुनन्दि ने अपने श्रावकाचार में प्रतिष्ठा विधि का विवेचन किया है, किन्तु उतना नहीं जितना की आचार्य सोमदेव ने किया है।
पं. आशाधर ने संक्षेप में पूजा के क्रम को बतलाया है। पं. मेधावी ने आचार्य वसुनन्दि का अनुसरण किया है। आचार्य सोमदेव ने पूजकों के दो प्रकार किए है। यथा
द्वयेदवेसेवाधिकृता: संकल्पिताप्तपूज्यपरिग्रहाः कृतप्रतिमापरिग्रहाश्चा' अर्थात् (1) पुष्पादि में पूज्य का संकल्प करके पूजन करने वाला और (2) प्रतिमा का अवलम्बन लेकर पूजा करने वाला।