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अनेकान्त 62/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2009
___ आचार्य सोमदेव के द्वारा पूजक को फल, पत्र और पाषाण आदि की तरह अन्य धर्म की मूर्ति में सकल्प करने का निषेध किया गया है तथा लिखा है कि जैसे शुद्व कन्या में ही पत्नी आदि का संकल्प किया जाता है, दूसरे से विवाहित में नहीं, उसी प्रकार शुद्ध द्रव्य में ही पूज्य का संकल्प करना चाहिए, आकारान्तर को प्राप्त वस्तु में नहीं। यथा
संकल्पोऽपि दलफलोपलादिष्विव न समयान्तरप्रतिमासु विधेयः। यतः शुद्धे वस्तुनि संकल्पः कन्याजन इवोचितः। नाकारान्तरसंक्रान्ते यथा परपरिग्रहे।
आचार्य सोमदेव ने उक्त दोनों प्रकार के पूजकों के लिए पृथक्-2 पूजा विधि का वर्णन किया है। आचार्य वसुनन्दि ने आचार्य सोमदेव द्वारा निर्दिष्ट उक्त दोनों प्रकारों को सद्भाव स्थापना तथा उन सद्भावस्थापना नाम दिये हैं तथा साकार वस्तु (प्रतिमा) में अर्हन्त आदि के गुणों का आरोपण करने का सद्भाव स्थापना और अक्ष वराटक आदि में अपनी बुद्धि से 'यह अमुक देवता है' ऐसा संकल्प करने को असद्भाव स्थापना बतलाया
__ आचार्य वसुनन्दि ने वर्तमान काल में असद्भाव स्थापना का निषेध किया है। तथा लिखा है कि- हुण्डावसर्पिणी काल में दूसरी असद्भाव स्थापना नहीं करनी चाहिए, क्योंकि कुलिंग मति से मोहितों को इसमें सन्देह हो सकता है। यथा
हुंडावसप्पिणीए विइया ठवणा ण होदि कायव्वा। लोए कुलिंगमइमोहिए जयो होइ संदेहो।
संदर्भ :
1. वामन शिवराम आप्टे, संस्कृत हिन्दी कोश, पृ.628 2. जैनेन्द्र सिद्धांत कोश, भाग-3, पृ.73 3. महापुराण सर्ग सं. 67, श्लो. सं. 193 4. महापुराण, सर्ग सं. 38, श्लो. सं. 26 5. वसुनन्दिकृत उवासयज्झयाणं, गाथा 381 6. भगवती आराधना 47/157/20 7. चारित्र प्राभृत, गाथा-6 8. आदि पुराण, श्लो., 24-25 9. पद्मनन्दि पंचविंशति, अधिकार सं. 6, श्लो. सं. 7 10, उपासकाध्ययन कल्प- 46, श्लो. 911 11. उपासकाध्ययनकल्प-35, श्लो. 481 12. अमितगति श्रावकाचार, बारहवाँ परिच्छेद, श्लो.12 13. पदमनन्दि पंचविंशति, अधिकार सं. 6, श्लो.14-15 14. पदमनन्दि पंचविंशति, अधिकार सं.6, श्लो. 16-17 15. पंचास्तिकाय, गाथा-166
16. प्रवचनसार, गाथा-1/69 17. पद्मचरित- 14/213
18. परमात्मप्रकाश, गाथा-168 19. वसुनन्दिकृत उवासयज्झयम गाथा 280-38120. वसुनन्दिकृत उवासयज्झयणं, गाथा-382 21. वसुनन्दिकृत उवासयज्झयणं, गाथा-383-384, 22. 385, 23. 387,
24. 388-389, 25.390-392
26393-447