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अनेकान्त 62/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2009
अर्थ- औदयिक भाव बंध के कारण होते हैं, परन्तु मोह के उदय से सहित। अर्थात् मोहनीय कर्म के उदय के अभाव में शेष औदयिक भाव नवीन बंध में समर्थ नहीं हैं।
सम्यक्दर्शन तीन प्रकार का होता है। 1.औपशमिक, 2.क्षायिक, 3.क्षायोपशमिक।।
सम्यग्ज्ञान पांच प्रकार का होता है। इनमें से केवलज्ञान क्षायिक भाव है, शेष चार मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान क्षायोपशमिक भाव हैं। सम्यक्चारित्र भी तीन प्रकार का है। 1.औपशमिक, 2.क्षायिक, 3. क्षायोपशमिक।
सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र को किसी भी आचार्य ने औदयिक भाव नहीं कहा है। औदयिक भाव ही बंधकर है। अतः सिद्ध होता है कि रत्नत्रय बंधकर नहीं है। पूर्वपक्ष परिहार
जिज्ञासा- सम्यग्दर्शन, जघन्यता को प्राप्त ज्ञान-गुण, सरागसंयम, संयमासंयम, सम्यक्चारित्र आदि को आर्षग्रंथों में बंधक/ देवायु का बंधक/तीर्थकर प्रकृति एवं आहारक प्रकृति का बंधक क्यों कहा है ?
परिहार-समयसार की तात्पर्यवृति टीका पृ.171-172 पर लिखा है कि "यदि यहाँ कोई शंका करे कि ज्ञान गुण और दर्शन गुण तो आत्मा के गुण हैं अत: वे बंध के कारण कैसे हो सकते हैं ? उसका समाधान करते हैं कि उदय में आये हुए मिथ्यात्वादि द्रव्य प्रत्यय आत्मा के ज्ञान और दर्शन गुण को रागादिमय अज्ञान भाव के रूप में परिणाम देते हैं। उस समय वह अज्ञान भाव में परिणत हुआ ज्ञान और दर्शन बंध का कारण होता है।" ।
इसस ध्वनित होता है कि सम्यग्दर्शन आदि से बंध नहीं होता है, परन्तु अवशिष्ट रागांश से बंध होता है। आचार्य अमृतचन्द्र का उल्लेख अत्यंत स्पष्ट है
येनांशेन सदृष्टिस्तेनांशेनास्य बन्धनं नास्ति। येनांशेन तु रागस्तेनांशेनास्य बंधनं भवति॥212।। येनांशेन ज्ञानं तेनांशेननास्य बन्धनं नास्ति। येनांशेन तु रागस्तेनांशेनास्य बन्धनं भवति॥213।। येनांशेन चरित्रं तेनांशेनास्य बन्धनं नास्ति। येनांशेन तु रागस्तेनांशेनास्य बन्धनं भवति।।214।।
पुरुषार्थ-सिद्ध्युपाय भावार्थ- जितने अंश से सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र है, उतने अंश से बंध नहीं है। जितने अंश से राग है, उतने अंश से बन्ध है।
आगे कहते हैं- "तीर्थकर प्रकृति एवं आहारक प्रकृति का जो बन्ध सम्यक्त्व और चारित्र से आगम में कहा है, वह भी नयवेत्ताओं को दोष के लिए नहीं है।
तीर्थकर प्रकृति और आहारक प्रकृति के बंधक योग और कषाय है, सम्यक्त्व और चारित्र के होने पर यह बन्ध होता है और नहीं होने पर नहीं होता है। अतः इस बन्ध में सम्यक्त्व और चारित्र उदासीन है।