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________________ अनेकान्त 62/4, अक्टूबर-दिसम्बर2009 रत्नत्रय राग का मार्ग नहीं है, वीतरागता का मार्ग है। रत्नकरण्डक श्रावकाचार में आचार्य समन्तभद्र लिखते हैं, "साधु राग और द्वेष की निवृत्ति के लिए चारित्र को प्राप्त होता है। आचार्य कुन्दकुन्दस्वामी कहते हैं- "मोह और क्षोभ से रहित आत्म परिणाम रूप समत्व ही चारित्र रूप धर्म है। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र राग का प्रतिपक्षभूत है। बंध राग के कारण होता है। अतः सिद्ध होता है कि रत्नत्रय बंधक नहीं है। द्वितीय दृष्टि आचार्य उपास्वामी ने तत्त्वार्थ सूत्र में बंध के चार प्रकार कहे हैं। 1. प्रकृति बंध, 2.स्थिति बंध, 3.अनुभाग बंध, 4.प्रदेश बंध।' बंध की परिभाषा इस प्रकार बतायी है सकषायत्वात् जीवः कर्मणो योग्यान् पुदगलानादत्ते स बंधः।।8/2।। अर्थ- कषाय सहित होने से जीव कर्मो के याग्य पुद्गलों का (कार्मण वर्गणाओं का) जो ग्रहण करता है, वह बंध है। आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तदेव द्रव्यसंग्रह में लिखते हैंप्रकृतिबंध और प्रदेशबंध योग से होता है तथा स्थितिबंध और अनुभाबंध कषाय से हाता है। आचार्य अमृतचन्द्रस्वामी कहते हैं- दर्शन-ज्ञान-चारित्र न योग रूप है और न कषाय रूप ही है।' चार प्रकार के बंध में से प्रकृति और प्रदेश बंध योग के कारण होते हैं तथा स्थिति और अनुभाग बंध कषाय के कारण होते हैं। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र न योग रूप हैं और न कषाय रूप ही हैं। अतः सिद्ध होता है कि रत्नत्रय से बंध नहीं होता है। तृतीय दृष्टि आचार्य उमास्वामी ने जीव के पाँच असाधारण भाव बताये हैं। 1.औपशमिक भाव 2. क्षायिक भाव 3.क्षायोपशमिक भाव 4.औदयिक भाव 5.परिणामिक भाव। इन पाँचों भावों में से औदयिक भाव को बंधकर कहा गया है। प्रमाण इस प्रकार है 1. ओदइया बंधयरा उवसमखयमिस्सया य मोक्खयरा। भावो दु पारिणामिओ करणोभयवज्जियो होंति॥ धवल पुस्तक 7 पृ. 9; जयधवल पुस्तक 1 पृ. 5 2. मोक्षं कुर्वन्ति मिश्रौपशमिकक्षायिकाभिधाः। बन्धमौदयिको भावो निष्क्रियः पारिणामिकः।। पंचास्तिकाय, तात्पर्यवृति पृ. 107; समयसार, तात्पर्यवृति पृ. 347 भावार्थ-औदयिक भाव बंधकर है, औपशमिक भाव, क्षायिक भाव और क्षायोपशमिक भाव मोक्षकर हैं तथा पारिणामिक भाव निष्क्रिय (दोनों कारणों से वर्जित) है। सभी औदयिक भाव भी बंध में कारण नहीं होते हैं। कहा हैऔदयिका भावा बंधकारणं भवन्ति, परं किन्तु मोहोदयसहिताः। प्रवचनसार तात्पर्यवृत्ति / पृ.52-53
SR No.538062
Book TitleAnekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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