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________________ अनेकान्त 62/4, अक्टूबर-दिसम्बर2009 जम्हा दु जहण्णादो णाणगुणादो पुणो वि परिणमदि। अण्णतं णाणगुणो तेण सु दो बंधगो भणिदो 178॥ अर्थ- क्योंकि ज्ञानगुण जघन्य ज्ञानगुण के कारण फिर से भी अन्य रूप से परिणमन करता है, इसलिए वह कर्मो का बंधक कहा गया है। इसी प्रकार क्र. 177,179,10 आदि में भी उपर्युक्त भाव है। 2. तत्त्वार्थ सूत्र में उमास्वामी ने कहा है कि सम्यक्त्वं च ।।6/21।। अर्थ- सम्यग्दर्शन भी देवायु के आस्रव का कारण है। इसी प्रकार सूत्र क्र. 06/20 एवं 6/24 में सरागसंयम, संयमासंयम, बालतप आदि को देवायु एवं दर्शनविशुद्धि आदि को तीर्थकर नामकर्म के आस्रव का कारण माना है। 3. आहारक शरीर के बंध में 6-7 गुणस्थान का संयम ही कारण है। उपर्युक्त एवं अन्य कुछ प्रकरणों के कारण श्रमण विरोधी विद्वान रत्नत्रय को भी बंधक घोषित कर मात्र शुद्धात्मानुभूति को ही अबंधक स्वीकार करते हैं। क्या रत्नत्रय अबंधक है ? तीर्थकर भगवन्तों की दिव्यध्वनि के श्रद्धानी पूज्य जैन आचार्य परंपरा कृत ग्रंथों में रत्नत्रय को अबंधक मानते हुए अनेक उल्लेख प्राप्त होते हैं। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र, संयम, संयमासंयम आदि को भी अबंधक ही कहा है, मोक्ष का साधक बताया है। यहाँ कुछ शास्त्रीय प्रमाण संकलित हैं - 1. आचार्य कुन्दकुन्दस्वामी ने समयसार जी लिखा है कि णत्थि दु आसवबंधो सम्मद्दिट्ठिस्स आसवणिरोहा। संते पुव्वणिबद्धे जाणदि सो ते अबंधंतो 173॥ अर्थ- सम्यग्दृष्टि जीव के आस्रव मूलक नवीन कर्मों का बंध नहीं होता किन्तु उसके आस्रव का निरोध ही होता है और पूर्व में बांधे हुए सत्ता में विद्यमान कर्मो को जानता ही है परन्तु नवीन कर्मबंध नहीं करता है। 2. आचार्य अमृतचन्द्र जी पुरुषार्थ-सिद्ध्युपाय में लिखा है किदर्शनमात्मविनिश्चितिरात्मपरिज्ञानमिष्यते बोधः। स्थितिरात्मनि चारित्रं कुत एतेभ्यो भवति बंधः।।216॥ अर्थ- अपने आत्मा का विनिश्चय सम्यग्दर्शन, आत्मा का विशेष ज्ञान सम्यग्ज्ञान और आत्मा में स्थिरता सम्यक्चारित्र कहा गया है, तो फिर इन तीनों से बंध कैसे होता है? अर्थात् नहीं होता। 3. सर्वत्र संयम, संयमासंयम आदि को असंख्यात गुण श्रेणी निर्जरा करने वाला कहा
SR No.538062
Book TitleAnekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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