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________________ अनेकान्त 62/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2009 रत्नत्रय बंधक या अबंधक (पुरुषार्थ देशना के परिप्रेक्ष्य में) - श्री पुलक गोयल आचार्य कुन्दकुन्दस्वामी के ग्रंथों के टीकाकारों में अग्रगण्य आचार्य अमृतचन्द्र जी की कृतियां प्राय: आध्यात्मिक शैली में जैनदर्शन का हृदय प्रकट करती हैं। आचार्य अमृतचन्द्र की चरणानुयोग विषयक कृति पुरुषार्थ-सिद्धयुपाय आध्यात्मिक शैली में रचा गया अनुपम मौलिक ग्रन्थ है। ___'पुरुषार्थ-देशना' में आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज की मुखर चिंतनधारा प्रवाहित है, जिसके प्रमुख अंगों में अनेकांत और स्याद्वाद के साथ मधुर आध्यात्मिक फटकार भी है, निश्चयाभासी एकांतवादियों के प्रति ताडना भी है तो निश्चय रत्नत्रय के प्रति प्रामाणिक उद्बोधन भी है। वस्तुतः आध्यात्मिक सत्पुरुष की चर्या विषयक कृति पर आध्यात्मिक प्रकाश का नाम है 'पुरुषार्थ देशना'। विषय प्रवेश : सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र को जैनाचार्यों ने आध्यात्मिक उन्नति के लिए अपरिहार्य समझकर 'रत्नत्रय' की उपमा से अलंकृत किया है। यह निर्विवाद सत्य है कि सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र की एकता ही मोक्ष का साक्षात् मार्ग है।' यह रत्नत्रय मुनि अवस्था में ही पूर्णता को प्राप्त होता है। गुणस्थानों की दृष्टि से रत्नत्रय का अस्तित्व 6-14 गुणस्थान तक है। सम्यग्दर्शन और सम्यकज्ञान का प्रारंभ चतुर्थ गुणस्थान से हो जाता है, पंचम गुणस्थान में एकदेश चारित्र है। द्रव्य और भाव के भेद से दो भेदों में विभक्त बन्ध के जो कर्ता है उन्हें बन्धक कहा जाता है। जो बन्ध का सद्भाव 1-13 गुणस्थान तक पाया जाता है। कषाय सहित जीवों के साम्परायिक आस्रव पूर्वक अधिक स्थिति व अनुभागवाला बंध होता है, कषाय रहित जीवों के ईर्यापथ आस्रव पूर्वक एक समय स्थिति वाला बंध होता है। कषाय रहित अवस्था में योग के कारण 11-13 गुणस्थान में बंध होता है। क्या रत्नत्रय बंधक है ? जैनाचार्यों ने अपने ग्रंथों के कुछ स्थलों में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र को आस्रव व बंध का कारण कहा है। जिनसे यह प्रतिध्वनित होता है कि रत्नत्रय बंधक है। कुछ अंश संकलित है - 1. समयसार जी में आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी ने कहा है कि
SR No.538062
Book TitleAnekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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