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अनेकान्त 62/4, अक्टूबर-दिसम्बर2009 7. श्रुतिर्वेदमिह प्राहुर्धर्मशास्त्रं स्मृतिर्मता।' - यशस्तिलक, पृ० 278 8. यशस्तिलक, पृ० 373 9. डॉ० मोहन चन्द, 'जैन तत्त्व चिन्तन: आधुनिक सन्दर्भ', सम्पादकीय लेख, 'आस्था और चिन्तन', आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ, दिल्ली, 1987, पृ० 2 10. डॉ. मोहन चन्द, 'सर्वोदयी समाज व्यवस्था का चिन्तन,' महावीर जयंती पर विशेष लेख,
राष्ट्रीय सहारा, 30 मार्च, 2007. 11. डॉ० महावीर सरन जैन, 'विश्व धर्म के रूप में जैन धर्म की प्रासंगिकता', 'जैन तत्त्व चिन्तन:
आधुनिक सन्दर्भ' खण्ड, 'आस्था और चिन्तन,' पृ० 59-60 12. डॉ० दामोदर शास्त्री, 'जैन धर्म एवं आचार,' सम्पादकीय लेख, 'आस्था और चिन्तन, पृ० 1 13. डॉ० मोहन चन्द, 'आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी की काव्य क्षणिकाएं,' 'सृजन संकल्प' खण्ड,
'आस्था और चिन्तन, पृ० 83 14. डॉ० दयानन्द भार्गव, 'जैन जीवन दर्शन की पृष्ठभूमि', जम्मू, 1975, पृ० 75 15. उपदेश सार संग्रह' - भाग-1, पूर्वोक्त, पृ077 16. वही, पृ० 78 17. डॉ. दयानन्द भार्गव, 'जैन जीवन दर्शन की पृष्ठभूमि,' पृ० 57 18. श्वेताश्वतरोपनिषद्, अध्याय 6 19. कालः स्वभावो नियतिर्यदृच्छा भूतानि यो निः पुरुष इति चिन्त्यम्।
संयोग एषां न स्वात्मभावादात्माप्यनीशः सुखदुःखहेतोः।। - श्वेता०, 1.2 20. गोम्मटसार, कर्मकाण्ड, 835, लखनऊ, 1937 21. 'आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी की काव्य क्षणिकाएं', 'आस्था और चिन्तन', पूर्वोक्त, पृ० 83 22. 'उपदेश सार संग्रह,' भाग-1 पृ० 332 23. 'आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी की काव्य क्षणिकाएं', 'आस्था और चिन्तन', पूर्वोक्त, पृ० 83 24. आचारांगसूत्र, 1.3.3 25, 'एगो य मरदि जीवो एगो य जीवदि सय।' - नियमसार, 101 26. 'जो परमप्पा सो जि हउं जो हउं सो परमप्पु।' - योगसार, 22 27. 'अप्पाणमेव जुज्झहि किं ते जुझेण बझओ।' - उत्तराध्ययनसूत्र, 9.35 28. डॉ० दयानन्द भार्गव, 'जैन जीवन दर्शन की पृष्ठभूमि', पृ० 24 29. अथर्ववेद, 10.7.17 30. 'सपयत्थं तित्थयरं अभिगदबुद्धिधस्स सुत्तोइस्स
दूरतरं णिव्वाणं संजमतवसंपओत्तस्स।' - पंचास्तिकाय, 170 31. 'उपदेश सार संग्रह,' भाग-2, पृ० 274
-एसोसिएट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग
रामजस कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली-7