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________________ अनेकान्त 62/4 अक्टूबर-दिसम्बर 2009 37 तब मंदिर एवं मूर्ति दोनों पूज्यता को प्राप्त हो जाते हैं। इस विधि-विधान के करने के लिए योग्य प्रतिष्ठाचार्य होना आवश्यक है। वसुनन्दि श्रावकाचार (388-389 ) में प्रतिष्ठाचार्य का लक्षण इस प्रकार बताया है। देस-कुल- जाइ सुद्धो णिरुवम अंगो विशुद्धसम्मत्तो पढमाणिओयकुसलो पइट्ठालक्खणविहिविदण्णू ॥ सावयगुणोववेदी उवासयन्झयणत्त्वथिरबुद्धि । एवं गुणो पड़ट्ठाइरिओ जिणसासणे भणिओ ।। अर्थात् जो देश, कुल और जाति से शुद्ध हो, निरुपम अंग का धारक हो, विशुद्ध सम्यग्दृष्टि हो, प्रथमानुयोग में कुशल हो, प्रतिष्ठा की लक्षण विधि का जानकार हो, श्रावक गुणों से युक्त हो, उपासकाध्ययन (श्रावकाचार ) शास्त्र में स्थिर बुद्धि हो, इस प्रकार के गुणवाला जिन शासन में प्रतिष्ठाचार्य कहा गया है। - एक अन्य स्थान पर प्रतिष्ठाचार्य के लक्षण इस प्रकार बताये गये हैं। स्याद्वादधुर्योऽक्षरता निरालसो रोगविहीनदेहः, प्राय: प्रकर्ता दमदानशीलो जितेन्द्रियो देवगुरुप्रमाणः । शास्त्रार्थसम्पत्ति - विदीर्णवादो धर्मापदेश-प्रणयः क्षमावान् । राजादिमान्यो नययोगभाजी तपोव्रतानुष्ठित-पूतदेहः । पूर्वं निमित्ताद्यनुमापकोऽर्थसंदेहहारी वजनैकचित्तः, सब्राह्मणो ब्रह्मविदां प्रतिष्ठो जिनैकधर्मा गुरुदत्तमंत्रः । भुक्त्वा हविष्यान्नमरात्रिभोजी निद्रां विजेतुं विहितोद्यमश्च, गतस्पृहो भक्तिपरात्मदुःख- प्राणये सिद्धिमनुर्विधिज्ञः । कुलक्रमापात सुविद्यया वः प्राप्तोसर्ग परिहर्तुमीशः, सोयं प्रतिष्ठाविधिषु प्रयोक्ता श्लाघ्याऽन्यथा दोषवती प्रतिष्ठा । अर्थात् प्रतिष्ठाचार्य को स्याद्वाद विद्या में निपुण, अक्षर ( बीज एवं मंत्र) वेत्ता, आलस्यहीन, रोग विहीन शरीर वाला, क्रियाओं में कुशल, संयमी (कषायों का दमन करने वाला-दमी), दानशील, इन्द्रियों को जीतने वाला, देव, शास्त्र, गुरु को प्रमाण मानने वाला, शास्त्रार्थ रूपी संपत्ति से युक्त, वाद में कुशल, धर्मोपदेश में पारंगत, क्षमावान् राजा आदि के द्वारा मान्यता प्राप्त, नयों का ज्ञाता, योग का पात्र, तप- व्रत- अनुष्ठान आदि से पवित्र देह वाला, निमित्त आदि के अनुमान करने में अर्थ जानने में कुशल, संदेह का हारक, यज्ञ आदि में दत्तचित्त वाला, सद्-ब्राह्मण (सद्गृहस्थ), आत्मा को जानने वाला, प्रतिष्ठित, एक जिन धर्म से युक्त गुरु से दिया गया है मंत्र जिसको एक बार भोजन करने वाला, रात्रि " 2
SR No.538062
Book TitleAnekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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