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अनेकान्त 62/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2009
(3) सुद्धो सुद्धादेसो णायव्वो परमभावदरसीहिं।
ववहारदेसिदा पुण जे दु अपरमेट्ठिा भावे।।12।। समयसार (आ.) 4. समयसार, (पूर्वाद्ध) पृ. 79 5. धर्मादि छहो द्रव्य मेरे कुछ भी नहीं हैं उपयोगयी आत्मा निश्चय से कही है। उनको ही धर्म
निर्ममत्व ज्ञानि जन कहें, मुनि शुद्धज्ञानी ही इसे प्राप्त कर सकें- समयसार 37 6. समयसार, पूर्वाद्ध पृ. 179 7. कर्तृकर्माधिकार (स.सा.) गाा. 96 की टीका 8. वही 9. सुविदिदपयत्थसुतो संयम तव संजुदो विगदरागो।
समणोसमसुहदुक्खो भणिदो सुद्धोव ओगोत्ति ।।14।। प्रवचनसार 10. कम्मस्स य परिणाम णोकम्मस्य य तहेव परिणाम।
ण करेइ एयमादा जो जाणदि सो हवदि णाणी ।।75।। (आ.) 11. समयसार, पूर्वार्द्ध पृ. 287 12. व्याप्यव्यापक भावरूप इक में अन्य स्वरूप नहीं।
द्रव्य औगुण भाव- भावक बिना कर्ता न कर्म स्थिती ।। ऐसा श्रेष्ठ विवेक भेदकर, जो मिथ्यान्धकार नशे।
सो ज्ञानी यह धन्य शोभित अहो कर्तृत्व शून्य कहे ।।49।। कर्तृकर्माधिकार पृ.286 13. सम्यग्दृष्टिः स्वयमयमहं जातु बन्धो न ये स्या
दित्युत्तानोत्पुलकवदना रागिणोप्याचरन्तु। आलम्बतां समितिपरतां ते यतोऽद्यापि पापा
आत्मानात्मावगमविर हात्सन्ति सम्यक्त्वरिक्ताः ।।371| अध्यात्मकलश 14. परमाणुमित्तयं पि तु रायादीणं तु विज्जदे जस्स।
णवि सो जाणदि अप्पाणयं तु सव्वागमधरोवि ।।201|| आ. ता. 211 15. स श्रुतकेवलिकल्योऽपि तथापि ज्ञानमयभावनामभावेन न जानात्यात्मानं
यस्तु अत्मानं न जानाति सोऽनात्मानमपि न जानाति ।।टी. आत्म गा. 201
- मण्डी आनन्दगंज
बड़ौत उ. प्र.
27 दिसम्बर 2009, रविवार, दोपहर 1 बजे वीर सेवा मन्दिर, सभागार में प्राच्यविद्या महार्णव आचार्य जुगलकिशोर 'मुख्तार' के जन्म-जयन्ती के पावन प्रसंग पर आचार्य जुगलकिशोर मुख्तार स्मृति व्याख्यानमाला का आयोजन किया जा रहा है। सुधी पाठकों से अनुरोध आप इस व्याख्यानमाला में सम्मिलित होकर कार्यक्रम का गौरव बढ़ावें।