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________________ अनेकान्त 62/4, अक्टूबर-दिसम्बर2009 वैदिक संस्कृति एवं श्रमण संस्कृति ___-प्रो. फूलचन्द जैन 'प्रेमी' हमारी गौरवमयी भारतीय संस्कृति अनेक संस्कृतियों के सम्मिश्रण का सर्वोत्तम उदाहरण है। इसमें मुख्यतः श्रमण एवं वैदिक-इन दो प्राचीन संस्कृतियों का व्यापक प्रभाव स्पष्ट है। यद्यपि वैदिक संस्कृति को इस देश की सर्व प्राचीन संस्कृति माना गया है, किन्तु वैदिक तथा अन्य साहित्यिक, पुरातात्त्विक आदि साक्ष्यों के आधार पर कुछ इतिहासकारों के मत से यह सिद्ध है कि श्रमण संस्कृति भी काफी प्राचीन है, कम से कम उतनी तो अवश्य, जितनी की वैदिक संस्कृति। वैदिक वाड्.मय में श्रमण संस्कृति से संबन्धित संदर्भो का उल्लेख काफी मात्रा में सुरक्षित है। वस्तुतः सामान्यतया वेदों से अधिक प्राचीन साहित्यिक प्रमाण अपने देश में नहीं है। इस दृष्टि से इन संदर्भो का श्रमण संस्कृति की प्राचीनता सिद्ध करने लिए, काफी महत्त्व है। अतः इन प्राचीन संदर्भो और प्रमाणों को सुरक्षित बनाये रखने के लिए श्रमण परंपरा वैदिक साहित्य की सदा कृतज्ञ और आभारी रहेगी। यह स्वाभाविक है कि जब दो संस्कृतियाँ लम्बे काल से एक साथ रहती आई हैं तो वैचारिक तथा परंपरागत आदि रूपों में एक दूसरे से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकतीं। यही बात पूर्वोक्त दोनों संस्कृतियों के विषय में भी कहा जा सकता है। अतः दोनों में आचार-विचार गत मूल्यों का आदान-प्रदान काफी मात्रा में हुआ है। इसीलिए आज जो भारतीय संस्कृति का स्वरूप देखने को मिलता है, उसमें वैदिक एवं श्रमण- ये दोनों संस्कृतियाँ रस्सी की तरह एक में गुंथीं (मिलीं) हुई अपने प्रिय भारतवर्ष को सुदृढ़ एवं अखण्ड आधार प्रदान किये हुए हैं। यद्यपि श्रमण संस्कृति में जैन एवं बौद्ध- ये दोनों सम्मिलित हैं, किन्तु श्रमण जैन संस्कृति बौद्ध से काफी प्राचीन हैं, क्योंकि जैन संस्कृति तीर्थकर ऋषभदेव से महावीर पर्यन्त चौबीस तीर्थकरों में से प्रथम आद्य तीर्थकर भगवान् ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा प्रवर्तित है, जबकि बौद्ध धर्म के प्रणेता भगवान बुद्ध हैं, जोकि जैन धर्म के अन्तिम एवं चौबीस तीर्थकर भगवान् महावीर के समकालीन (ईसापूर्व छठी सदी के) हैं। इस प्रकार वैदिक एवं श्रमण- इन दोनों संस्कृतियों का तुलनात्मक अध्ययन-अनुसंधान बहुत आवश्यक तो हैं ही, महत्त्वपूर्ण भी हैं। वैदिक साहित्य में उल्लिखित अर्हत्, शिश्नदेव, व्रात्य, यति, हिरण्यगर्भ, वातरसना मुनि, केशी, निग्रंथ, पणि आदि शब्द तथा तीर्थंकरों के नामोल्लेख श्रमण संस्कृति के उत्कर्ष का द्योतन करते हैं। अतः इनका अध्ययन- आदि अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है।
SR No.538062
Book TitleAnekant 2009 Book 62 Ank 03 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2009
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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