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________________ अनेकान्त 61/1-2-3-4 (ख) "भूत-भविष्यत् पर्यायें प्रत्यक्षज्ञान के प्रति, या प्रत्यक्षज्ञान की अपेक्षा नियत अर्थात् निश्चित हैं" - अनेकान्त का प्रखर दुन्दुभिघोष करने वाले, एवं अनेकान्त को परमागम का प्राणभूत प्ररूपित करने वाले श्रीमद् अमृतचन्द्राचार्य का यह नयावलम्बी कथन भी, स्वाभाविक रूप से अपने प्रतिपक्षी नय के विषयभूत इस कथन की सापेक्षता रखता है कि ज्ञेयपदार्थ के स्वयं के प्रति अथवा ज्ञेयपदार्थ की अपेक्षा नियत अथवा निश्चित नहीं हैं; क्योंकि ज्ञेयपदार्थ के निज अस्तित्व में ही जब उन भूत-भविष्यत् पर्यायों का निश्चय से असदभाव है, तब ज्ञेयापेक्षया उनके नियत या निश्चित होने का प्रश्न ही कैसे पैदा हो सकता है? यह एक मूलभूत, किन्तु बहुत ही सरल-स्पष्ट मुददा है जिस पर आज के विद्वानों को निष्पक्ष व पूर्वाग्रहरहित होकर विचार करने की जरूरत है : भूत-भविष्यत् पर्यायें केवलज्ञान में झलकी हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं; किन्तु उस ज्ञानापेक्ष निश्चितपने को जैसे ही हम ज्ञेयपदार्थ पर आरोपित करते हैं - जिसके अस्तित्व में उन पर्यायों का निश्चय से असदभाव है - तो हमारा यह आरोपण निस्सन्देह 'उपचार' की कोटि में आता है। यह बात हमें भली-भांति समझ में आ जाएगी : (क) यदि हम इस सत्य को स्मृति में बनाए रखें कि ज्ञान और ज्ञेयों के बीच कोई कारण कार्य सम्बन्ध जिनागम में कदापि स्वीकार नहीं किया गया है (कृपया देखें, अगले अनुच्छेद की चर्चा), तथा (ख) यदि हम 'यथार्थ', 'वास्तविक' आदि शब्दों के भाव को सम्यक् रीति से हृदयंगम करें : यथा = जैसा; अर्थ = ज्ञेयपदार्थ; 'यथार्थ' = जैसा ज्ञेयपदार्थ है, वैसा ही जानना, निरूपण करना, इत्यादि। वास्तविक' शब्द मूलतः 'वस्तु' शब्द से ही बना है, अतः 'वास्तविक' = जैसी वस्तु है, वैसा ही जानना, निरूपण करना, इत्यादि। साफ जाहिर है कि जब ज्ञेयपदार्थ या वस्तु के अस्तित्व में भूत-भविष्यत् पर्यायों का असद्भाव है, तब ज्ञेयपदार्थ अथवा वस्तु की अपेक्षा उनकी (भूत-भविष्यत् पर्यायों की) निश्चितता कहना 'यथार्थ' या 'वास्तविक' कैसे हो सकता है? (ग) यदि अब भी किसी जिज्ञासु की समझ में यह बात न बैठ रही हो तो उसे स्वामी समन्तभद्र द्वारा हम छद्मस्थों के सन्दर्भ में कही गई, आप्तमीमांसा की इस कारिका का अध्ययन करना चाहिये :
SR No.538061
Book TitleAnekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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