SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 61/1-2-3-4 पर्यायशक्ति/ योग्यता' का उनका स्वकल्पित नियम खण्ड-खण्ड होकर बिखर जाएगा। 19. भूत-भविष्यत् पर्यायें - ज्ञेयपदार्थ के अस्तित्व में निश्चय से असदभूत; अतः ज्ञेयपदार्थ की स्वयं की अपेक्षा, निश्चय से अनिश्चित/अनियत स्वामीकार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथाचतुष्क 319-22 मे कहा गया है (अपने परिणामो को सँभालने के प्रयोजनवश) सम्यग्दृष्टि ऐसा विचार करता है कि पदार्थो-परिस्थितियो का भविष्यत्कालीन परिणमन जैसा केवलज्ञानी द्वारा नियत अर्थात् निश्चित रूप से जाना गया है वैसा घटित होगा (अत उन पदार्थो-परिस्थितियो को अन्यथा परिणमाने के मेरे रागद्वेषात्मक विकल्प निरर्थक है, और फिर, वे कर्मबन्ध के होने मे कारण है)। इसी प्रकार, प्रवचनसार, गाथा 38 की तत्त्वप्रदीपिका टीका मे आचार्य अमृतचन्द्र ने कहा है परिच्छेदं प्रति नियतत्वात् ...अर्थात 'प्रत्यक्षज्ञान के प्रति अथवा प्रत्यक्षज्ञान की अपेक्षा नियत अथवा निश्चित ज्ञात होन से ... । केवलज्ञान समस्त द्रव्यो की समस्त पर्यायो को स्पष्ट एव निश्चित जानता है, इसमे कोई सन्दह नही। अत उक्त कथनो को उतना ही माने - स्वामी समन्तभद्र के शब्दो मे, अन्यून अनतिरिक्तम्' अर्थात् न उससे कम माने ओर न ही ज्यादा माने - तब तो ठीक है, क्योकि अभी ऊपर चर्चा कर ही आए है कि केवलज्ञान की ऐसी दिव्य महिमा है कि वह उन पर्यायो को भी स्पष्ट एव निश्चित रूप से जानता है जिनका ज्ञेयपदार्थ मे वर्तमान मे अस्तित्व नही है। परन्तु विशिष्टज्ञानी, वीतरागी आचार्यों के उक्त वचनो की अपनी मान्यता/कल्पना के अनुसार व्याख्या करके, यदि हम ज्ञेयपदार्थ के परिणमन को "उस ज्ञेयपदार्थ की, स्वय की अपेक्षा भी नियत या निश्चित" मानते है तो इस लेख के प्रारम्भ मे गोम्मटसार से उद्धृत की गई गाथा 882 ही हमारी ऐसी मान्यता पर लागू पडेगी और हम 'एकान्त नियतिवादी होने के अपराध से कदापि नही बच पाएगे। कारण यह कि (क) सम्यग्दृष्टि का उपर्युक्त अनुप्रेक्षात्मक विचार स्पष्टतः एकनयावलम्बी है (जैसा कि अनित्य, अशरण आदि सभी अनुप्रेक्षात्मक विचारणाए एक-एक नय का अवलम्बन लेकर ही की जाती है), अतः अपने प्रतिपक्षी नय के सापेक्ष है।
SR No.538061
Book TitleAnekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy