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अनेकान्त 61/ 1-2-3-4
वाला चेतनपदार्थ, उसका संयोगी द्रव्यकर्म, उसका संयोगी स्थूल औदारिक शरीर, वह पिस्तौल, वे गोलियाँ (तथा अन्यान्य जड-चेतनपदार्थ भी जिनका कि सहयोग रहा होगा ) उन सबका परिणमन स्वतन्त्र हुआ कि परतन्त्र ? यदि स्वतन्त्र हुआ तो उस घटना का तथाकथित पूर्वनियतपना नहीं बनता । और यदि 'परतन्त्र हुआ' कहते हो तो जिनागम के अनुसार 'प्रत्येक द्रव्य की स्वतन्त्रता' के मूल सिद्धान्त" के ही खण्डित होने का प्रसंग उपस्थित हो जाता है ।
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प्रस्तुत तथा पिछले अनुच्छेद की विचारणा से सुस्पष्ट है कि अनन्त ज्ञेयपदार्थो की उन सभी पर्यायों / घटनाओं को केवलज्ञानी जानते है जिनकी व्यक्ति अनेक पदार्थो के बीच होने वाले पारस्परिक निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्धों की अपेक्षा रखती है, और इसलिये उन पर्यायो की सम्भाव्यता एक अकेले उपादान पदार्थ को दृष्टि में लेने पर कदापि लक्षित नहीं की जा सकती। श्रीकुन्दकुन्दादि आचार्यो के अनुसार, केवलज्ञान उन पर्यायों को जानता है जिनका कि ज्ञेयपदार्थ में वर्तमान में असद्भाव है: यही कारण है कि आचार्यों ने ज्ञान को ज्ञेयप्रमाण बतलाया है, " किन्तु ज्ञेय को ज्ञानप्रमाण कभी नहीं बतलाया । किन्तु जरा देखिये कि आधुनिक नियतिवाद के प्रचारक क्या कहते है "जो कुछ वस्तु मे होता है वह सब केवली जानता है, और जो कुछ केवली ने जाना है वह सब वस्तु मे होता है।"98 उनके इस वक्तव्य ( statement) के पूवार्द्ध से हमे कोई विरोध नहीं है, चूँकि वह आगम-सम्मत है
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"जो कुछ वस्तु मे होता है वह सब केवली जानते हैं, " यह सभी जैनो को निर्विवादित रूप से मान्य है । अब उत्तरार्द्ध पर ध्यान दीजिये : जो कुछ केवली ने जाना है वह सब वस्तु में होता है। यहाँ हम एक प्रश्न पूछना चाहेगे केवली भगवान् ने वर्तमान म किसी विवक्षित वस्तु की जो भूत-भविष्यत् पर्याये जानी है, वे सब उस वस्तु मे किस रूप से है (क) व्यक्ति-रूप- से या (ख) शक्ति - रूप - से? जाहिर है कि इस सवाल के दो ही जवाब हो सकते हैं : 'क' अथवा 'ख' | यदि वे इसका जवाब 'क' मे देते है तो बडी भारी आपत्ति आ खड़ी होगी एक पदार्थ में एक-साथ भूतभविष्यत्कालसम्बन्धी अनन्त पर्यायें प्राप्त हो जाने का जिनागम-विरुद्ध ( किन्तु सांख्यमतानुकूल) प्रसंग उपस्थित हो जाएगा। दूसरी ओर, यदि वे इसका जवाब 'ख' में देते हैं तो भूतभविष्यत्कालसम्बन्धी अनन्त पर्यायशक्तियों या योग्यताओं का आगम-सम्मत अस्तित्व उन्हें स्वीकार करना पडेगा, जिसके फलस्वरूप, एक काल में एक