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अनेकान्त 61/1-2-3-4
जिस प्रकार वह अवगाही पदार्थो को अवगाहहेतु है उसी प्रकार, गति-स्थितिमान होने वाले पदार्थों को गति-स्थितिहेतु भी हो तो सर्वोत्कृष्ट स्वाभाविक ऊर्ध्वगति से परिणत सिद्धभगवन्त, बहिरंग-अन्तरंग साधनरूप सामग्री होने पर भी क्यों उस आकाश में स्थिर हों?"63 अमृतचन्द्रसूरि का आशय सुस्पष्ट है : यदि अलोकाकाश में भी गतिहेतुत्व मान लिया जाए तो अपेक्षित निमित्त या बहिरंग कारण की पूर्ति हो जाने से बाह्याभ्यन्तर साधन-सामग्री की पूर्णता हो जाती है, क्योंकि सिद्ध भगवान में ऊर्ध्वगमन की स्वाभाविक योग्यतारूप अन्तरंग कारण तो मौजूद है ही। परन्तु, देखिये कि अपनी स्वकल्पित मान्यता को टूटने से बचाने के लिये, हमारे आधुनिक नियतिवादी बन्धुजन क्या करते हैं? (खेदपूर्वक कहना पडता है कि) वे आचार्य कुन्दकुन्द, गृद्धपिच्छाचार्य, स्वामी पूज्यपाद, भट्ट अकलंकदेव, आचार्य विद्यानन्दि एवं अमृतचन्द्रसूरि आदि अनेकानेक आर्ष आचार्यों द्वारा मान्य ऊर्ध्वगति की उस स्वाभाविक योग्यता के अस्तित्व को लोकशिखर पर पहुंचे सिद्ध परमात्मा में स्वीकार ही नहीं करते, क्योंकि आचार्यों का वचन स्वीकार लेने पर (क) सिद्ध परमात्मा में एक-साथ ऊर्ध्वगति की तथा लोकशिखर पर स्थिति की आगम-सम्मत दोनों पर्याययोग्यतायें माननी पडेंगी, और (ख) सिद्धभगवानरूपी उपादान में ऊर्ध्वगति की योग्यता होते हुए भी, धर्मास्तिकायरूपी निमित्त का अभाव होने से, 'निमित्त की स्वतः उपस्थिति का उनका मनगढंत नियम खण्डित हो जाएगा! 4. नौ अनदिश तथा सर्वार्थसिद्धि आदि पॉच अनुत्तर विमानों के अहमिन्द्रों के अवधिज्ञान की शक्ति एवं विक्रिया की शक्ति/ योग्यता – दोनों ही, आगम में सातवी पृथ्वी पर्यन्त बतलाई गई है, किन्तु अत्यन्त मन्दरागी, शुक्ललेश्या के धारक वे सम्यग्दृष्टि देव अपने-अपने विमानक्षेत्र से भी बाहर नहीं जाते 169 यहाँ तक कि जिनेन्द्रों के पचकल्याणकों में भी वे नहीं आते, अपितु अपने ही स्थान पर स्थित रहकर मुकुटों से अपने हाथों को लगाकर परोक्ष नमस्कार करते हैं।
उपर्युक्त अनेक आगमप्रमाणों से निस्सन्देह सिद्ध होता है कि विवक्षित क्षण में कार्य जैसा और जितना घटित हो रहा है, तत्क्षण-सम्बन्धी वैसी और उतनी ही एक-अकेली पर्याययोग्यता मानना सरासर आगम-विरुद्ध है। इस प्रकार, हम पाते हैं कि बीसवीं सदी के पॉचवें दशक में कल्पित किया गया, ‘एक-समयमें-एक-पर्याययोग्यता' का यह नूतन सिद्धान्त आर्ष आचार्यो के वचनों के समक्ष टिकने में स्पष्ट एवं असन्दिग्ध रूप से असमर्थ है!!