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________________ अनेकान्त 61/1-2-3-4 हो तो भी वे जान सकते हैं। इस प्रकार उनकी शक्ति या सामर्थ्य से परिचय कराया गया है। यहाँ भी असन्दिग्ध रूप से स्पष्ट है कि एक लोकप्रमाण, संख्यात लोकप्रमाण, परीतासंख्यात ... , युक्तासंख्यात ..., असंख्यातासंख्यात लोकप्रमाण क्षेत्र में स्थित रूपी पदार्थों को जानने की सामर्थ्य/शक्ति/योग्यताएं एक-साथ परमावधि-सर्वावधिज्ञान में है; किन्तु केवल लोकाकाश के भीतर स्थित ज्ञेयों को जानने की योग्यता/शक्ति ही व्यक्त हो पाती है, उससे बाहर के क्षेत्र में तयोग्य ज्ञेयों की अनुपलब्धि के कारण। 3. सिद्धात्मा के विषय में आचार्य पूज्यपाद कहते हैं : मुक्तात्मा नानागतिविकारकारणकर्मनिवारणे सत्यूर्ध्वगतिस्वभावादूर्ध्वमेवारोहति अर्थात् मुक्त आत्मा नानागतिरूप विकार के कारणभूत कर्म का अभाव होने पर, ऊर्ध्वगमन स्वभाव होने से ऊपर की ओर गमन करता है (सर्वार्थसिद्धि, 10/7)। यदि मुक्त जीव ऊर्ध्वगमन स्वभाववाला है तो लोकान्त से ऊपर भी किस कारण से गमन नहीं करता? इसके उत्तर में गृद्धपिच्छाचार्य ने कहा है : धर्मास्तिकायाभावात् (त० सू०, 10/8) अर्थात् गति के उपकार का निमित्तभूत धर्मास्तिकाय चूँकि लोकान्त के ऊपर नहीं है इसलिये मुक्त जीव का आगे गमन नहीं होता। सुस्पष्ट है कि सिद्ध परमात्मा में ऊर्ध्वगति की स्वाभाविक योग्यता होते हुए भी, धर्मद्रव्यरूपी निमित्त के अभाव में ऊर्ध्वगमनरूप कार्य घटित नहीं होता। ज्ञातव्य है कि स्वाभाविक योग्यता कोई ऐसी वस्तु नहीं है कि एक क्षण तो हो और अगले क्षण उसका अभाव हो जाए। पंचास्तिकाय में आचार्य कुन्दकुन्द स्वयं यह प्रश्न उठाते हैं : आगासं अवगासं गमणद्विदिकारणेहिं देदि जदि। उड्डंगदिप्पधाणा सिद्धा चिट्ठति किध तत्थ।। 92 ।। अर्थ : यदि आकाशद्रव्य गति-स्थिति के कारण सहित अवकाश देता हो (अर्थात् आकाशद्रव्य यदि अवकाशहेतु होने के साथ-साथ, गति-स्थितिहेतु भी हो) तो ऊर्ध्वगतिप्रधान सिद्ध उस आकाश में क्यों स्थिर हों, अर्थात् आगे गमन क्यों न करें? दूसरे शब्दों में, यदि आकाशद्रव्य की तरह ही धर्मद्रव्य का भी लोक के बाहर अस्तित्व होता, तो ऊर्ध्वगमनस्वभाव वाले सिद्ध परमात्मा लोकशिखर पर पहुँचकर क्यों रुकते, आगे गमन क्यों न करते? इस गाथा की टीका में आचार्य अमृतचन्द्र लिखते हैं : “यदि आकाशद्रव्य,
SR No.538061
Book TitleAnekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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