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अनेकान्त 61/ 1-2-3-4
अनन्तानन्त लोकालोको को प्रतिसमय जानने की सामर्थ्य / शक्ति / योग्यताए एक-साथ केवलज्ञान मे है, किन्तु केवल एक लोकालोक को जानने की योग्यता / शक्ति ही व्यक्त हो पाती है, मात्र उतने ही ज्ञेयो का अस्तित्व पाए जाने के कारण। प्रवचनसार, गाथा 23 का एक अश है णाणं णेयप्यमाणमुद्दिट्ठ अर्थात् ज्ञान को ज्ञेयप्रमाण कहा गया है। ज्ञातव्य है कि आचार्य कुन्दकुन्द का यह कथन केवलज्ञान की अनन्तानन्त शक्ति / सामर्थ्य / योग्यता की व्यक्ति को दृष्टि मे रखकर ही किया गया प्रतीत होता है | 58
[आर्ष आचार्यो के उपर्युक्त कथनो के विपरीत, आधुनिक नियतिवाद के प्रचारक के निम्न वचन पर दृष्टिपात कीजिये "एक समय मे दो योग्यताए कदापि नही होती, क्योकि जिस समय जैसी योग्यता है वैसी पर्याय प्रकट होती है । और, उस समय यदि दूसरी योग्यता भी हो तो एक ही साथ दो पर्याये हो जाए, परन्तु ऐसा कभी नही हो सकता। जिस समय जो पर्याय प्रकट होती है उस समय दूसरी पर्याय की योग्यता नही होती।"59 सुधी पाठक अब स्वय निर्णय करे कि एक ओर तो आर्ष आचार्यो के प्रामाणिक वचन, और, दूसरी ओर, किसी वक्ता का यह स्वकल्पित, आगम-विरुद्ध कथन, इनके बीच वे किसे मान्य समझेगे? और, यह भी कि जो लोग भट्ट अकलकदेव के उपर्युक्त कथन को सत्य नही मानते, क्या वे अनन्तानन्त लोकालोको को भी प्रतिसमय जानने मे समर्थ केवलज्ञान के "सच्चे श्रद्धानी" कहलाने के अधिकारी है ? ]
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2. गणधरदेवादिक चरमशरीरी तपोधन निर्ग्रन्थो के होने वाले उत्कृष्ट परमावधिज्ञान एव सर्वावधिज्ञान का विषयभूत उत्कृष्ट क्षेत्र आगम मे असख्यात लोकप्रमाण बतलाया गया है ।" 'रूपिष्ववधेः' (त० सू० 1 / 27 ) के अनुसार, अवधिज्ञान की प्रवृत्ति रूपी पदार्थों में ही होती है, और रूपी पदार्थ (अर्थात् पुद्गल एव कर्मपुद्गलो से बद्ध ससारी जीवात्माए) चूँकि लोक से बाहर नही पाए जाते, अत परमावधि - सर्वावधिज्ञान केवल लोकाकाश के भीतर ही जानता है। तब क्या उसकी वर्तमान पर्याययोग्यता लोकाकाश के भीतर ही जानने की है ? यहाँ भी, जिनागम का उत्तर नकारात्मक है, क्योकि षट्खण्डागम की धवला टीका मे आचार्य वीरसेन लिखते है एसो एक्को चेव लोगो, परमोहि- सव्वोहीओ असंखेज्जलोगे जाणंति त्ति घडदे ? ण एस दोसो, सव्वो पोग्गलरासी जदि असंखेज्जलोगे आवूरिऊण अवचिट्ठदि तो वि जाणंति त्ति तेसिं सत्तिप्पदंसणादो ।" शका यह एक ही लोक है, परमावधि और सर्वावधिज्ञानी असख्यात लोको को जानते है, यह कैसे घटित होता है? समाधान यह कोई दोष नही है, क्योकि यदि सब पुद्गलराशि असख्यात लोको को भरकर स्थित