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________________ अनेकान्त 61/1-2-3-4 73 लगता है तो तदनुसार उसका मानस प्रवृत्त होता है, किसी घटना या कहानी के पात्रों से जुड़कर राग-द्वेषरूप परिणमन करने लगता है। दूसरी ओर, यदि वह किसी सुशास्त्र का अवलम्बन लेता है, उसका अध्ययन करने में अपने उपयोग को लगाता है तो कुछ दूसरे ही प्रकार के भाव (प्रशस्त जाति के परिणाम) उसके मन में उदित होंगे; जो भी हो, चुनाव उस मनुष्य का है। इस प्रकार एक ओर आजीविका, परिवार, भोगोपभोग-सामग्री आदि, और दूसरी ओर सुदेव-शास्त्र-गुरु, इन भिन्न-भिन्न अवलम्बनों के माध्यम से भिन्न-भिन्न प्रकार के परिणाम करना, यह सब इस जीव की पर्याययोग्यताओं के अन्तर्गत आता है। तात्पर्य यह है कि हम जिस किसी पदार्थ का अपने उपयोग में अवलम्बन लेते हैं, उसी से सम्बन्धित शुभ-अशुभ विकल्प, अपनी रुचि या रागद्वेषात्मक स्वभाव के अनुसार करने लगते हैं। ___ इस प्रकार निष्पक्ष, तर्कसंगत, युक्तियुक्त और प्रत्यक्ष अनुभव से अबाधित विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि प्रत्येक पदार्थ में चाहे वह अचेतन हो अथवा चेतन, अनेकानेक प्रकार की पर्याययोग्यताएँ पाई जाती हैं। हाँ, इतना अन्तर अवश्य है कि अचेतन पदार्थ का परिणमन (अनेकानेक में से किसी एक पर्याययोग्यता की अभिव्यक्ति) तो मुख्यतः बाहरी निमित्तों के मिलने पर निर्भर करती है, जबकि चेतन जाति के पदार्थों अर्थात् जीवों में से, संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों का परिणमन (अनेकानेक में से किसी एक पर्याययोग्यता की अभिव्यक्ति) मुख्यतः उनकी स्वयं की रुचि और स्वयं के पुरुषार्थ पर आधारित है - यही कारण है कि सर्वज्ञ भगवान् तथा पूज्य आचार्यों ने उन्हीं को लक्ष्य करके उपदेश दिया है। स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा में स्वामी कुमार द्वारा भी यही अभिप्राय व्यक्त किया गया है : कालाइलद्धिजुत्ता णाणासत्तीहि संजुदा अत्था। परिणममाणा हि सयं ण सक्कदे को वि वारेहूँ।। 219 ।। अर्थ : सभी पदार्थों में नाना शक्तियां, सामर्थ्य या योग्यताएं हैं। काल आदि की लब्धि होने पर, यानी द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भावरूप सामग्री की प्राप्ति के अनुसार वे पदार्थ स्वयं परिणमन करते हैं; उन्हें उससे कोई नहीं रोक सकता। 10. ज्ञानात्मक परिणामों सम्बन्धी अनेकानेक योग्यताएं : ज्ञानावरणीय आदि कर्मों के क्षयोपशम के अनुसार यदि कोई संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव है (जैसे कि हम सभी मनुष्य हैं ही) तो उसके
SR No.538061
Book TitleAnekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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