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अनेकान्त 61/1-2-3-4
... अत एव सर्वारम्भेण मोहक्षपणाय पुरुषकारे निषीदामि (तत्त्वप्रदीपिका वृत्ति)। अर्थ : जो जिनेन्द्र के उपदेश को प्राप्त करके मोह-राग-द्वेष का नाश करता है, वह अल्पकाल में सर्वदुःखों से मुक्त होता है। ... इसलिये सम्पूर्ण प्रयत्नपूर्वक मोह का क्षय करने के लिये मैं पुरुषार्थ का आश्रय ग्रहण करता हूँ। 7. मोक्षमार्ग के सन्दर्भ में पुरुषार्थ का स्वरूप मोक्षमार्ग के सन्दर्भ में विचार करें तो 'पुरुषार्थ' शब्द का (कोश के अनुसार) पहला अर्थ 'मोक्षरूपी साध्य' को जताता है, जबकि दूसरा अर्थ (जो कि प्रस्तुत लेख में अभिप्रेत है) उस 'साध्य के लिये की जाने वाली साधना' को। इसी दूसरे अर्थ में आचार्य अमृतचन्द्र ने 'पुरुषार्थसिद्धि-उपाय', इस शब्दसमास का प्रयोग किया है। पुरुषार्थसिद्धयुपाय में आचार्यश्री कहते हैं :
विपरीताभिनिवेशं निरस्य सम्यग्व्यवस्य निजतत्त्वम् ।
यत्तस्मादविचलनं स एव पुरुषार्थसिद्धयुपायोऽयम्।।15।। अर्थात् (1) विपरीत अभिनिवेश (शरीरादिक एवं कषायादिक के साथ इस जीव द्वारा किये जाने वाले अनादिकालीन एकानभवन) का निरसन, (2) निजतत्त्व को सम्यक रूप से यथावत् जानना/स्वरूपानुभवन, तथा (3) अपने उस स्वरूप (में लीन होकर फिर उस) से च्युत न होना, यही मोक्षसाध्य की सिद्धि का उपाय है। इन तीनों उपायों अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र की प्राप्ति के लिये, संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों द्वारा किया जाने वाला समस्त सम्यक् प्रयत्न ही प्रस्तुत लेख के सन्दर्भ में 'पुरुषार्थ' शब्द का वाच्य है। भेदविज्ञान का साधक/पोषक वह सम्यक् पुरुषार्थ ही साधकजीव को अनवरत एवं प्रगाढ साध ना की तर्कसंगत परिणति (logical conclusion) के रूप में, रत्नत्रय की परमपूर्णता तक पहुंचाने वाला होता है।
मोक्षमार्ग में पुरुषार्थ की ही प्रधानता है, जैसा कि पण्डित टोडरमल जी ने मोक्षमार्गप्रकाशक के नौवें अधिकार में पुरुषार्थ को मुख्य/समर्थ कारण जबकि अन्य हेतुओं को गौण/ असमर्थ कारण बतलाया है - "प्रश्न . मोक्ष का उपाय काललब्धि आने पर, भवितव्य के अनुसार बनता है, या मोहादि के उपशमादि होने पर बनता है, या फिर अपने पुरुषार्थ से उद्यम करने पर बनता है? यदि प्रथम दो कारणों से बनता है तो हमें उपदेश किसलिये देते हो? ... समाधान : एक कार्य के होने में अनेक कारण मिलते हैं; जहाँ मोक्ष का उपाय बनता है, वहाँ तो पूर्वोक्त तीनो ही कारण मिलते हैं; और जहाँ नहीं बनता, वहॉ तीनों ही कारण नहीं मिलते। जो पूर्वोक्त तीन कारण कहे,