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अनेकान्त 61/1-2-3-4
तीसरे सूत्र की व्याख्या करते हुए आचार्य वीरसेन कहते हैं : "इस सूत्र के द्वारा क्षयोपशमलब्धि, विशुद्धिलब्धि, देशनालब्धि और प्रायोग्यलब्धि, ये चारों लब्धियां प्ररूपित की गई हैं। ... प्रश्न : सूत्र में तो केवल एक काललब्धि ही प्ररूपित की गई है, उसमें इन चारों लब्धियों का होना कैसे सम्भव है? उत्तर : नहीं; क्योंकि प्रतिसमय अनन्तगुने हीन अनुभाग की उदीरणा का (अर्थात् क्षयोपशमलब्धि का), अनन्तगुणित क्रम द्वारा वर्धमान विशुद्धि का (अर्थात् विशुद्धिलब्धि का). और आचार्य के उपदेश की प्राप्ति का (अर्थात् देशनालब्धि का) [तथा तत्त्वचिंतवनरूप प्रायोग्यलब्धि का एक काललब्धि में अतभाव हो जाता है।"37
ऐसा ही आशय आचार्य जयसेन द्वारा पंचास्तिकाय की टीका में व्यक्त किया गया है : “जब यह जीव आगमभाषा के अनुसार कालादिक लब्धिरूप
और अध्यात्मभाषा के अनुसार शुद्धात्माभिमुख परिणामरूप स्वसंवेदनज्ञान को प्राप्त करता है तब पहले मिथ्यात्वादि सात कर्मप्रकृतियों के उपशम होने पर, और फिर उनका क्षयोपशम होने पर सरागसम्यग्दृष्टि हो जाता है।"38
चूंकि मोक्षमार्ग की शुरुआत ही सम्यग्दर्शन से होती है, इसलिये आचार्यो के उपर्युक्त उद्धरणों से निष्कर्ष निकलता है कि मोक्षमार्ग के सन्दर्भ में 'काललब्धि' कुछ और नहीं, प्रकारान्तर से 'क्षयोपशम' से लेकर 'करण' तक पॉचों लब्धियों के समुच्चय की, साधना द्वारा सम्प्राप्ति की अभिव्यक्ति मात्र है।39 225 नियति : अब शेष रहा 'नियति' संज्ञक हेतु, सो 'मिथ्या नियति' की क्या परिभाषा है, यह तो ऊपर, प्रथम अनुच्छेद में एकान्त नियतिवाद की चर्चा के दौरान देख ही आए हैं। कोश में देखते हैं तो 'नियति' के अर्थो में वहाँ भाग्य/प्रारब्ध/भवितव्यता, destiny/fate को शामिल किया गया है। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश में भी प्रायः इसी दृष्टि को अपनाया गया है; "नियति शीर्षक के नीचे दिये गए विभिन्न उपशीर्षकों के अन्तर्गत जिन-जिन उद्धरणों को संकलित किया गया है, उन सबके अवलोकन से तो यही निष्कर्ष निकलता प्रतीत होता है? – यदि ऐसा है, तो नियति और दैव/भाग्य एकार्थवाची ठहरते
न तो सन्मतिसूत्रकार ने कहीं 'नियति' को परिभाषित किया है, और न ही किन्हीं अन्य आर्ष आचार्य की रचना में 'नियति' की परिभाषा अभी तक देखने में आई है। तो भी, प्रकृत गाथा में कहे गए अन्य चार हेतुओं के साथ सम्यक् सापेक्षता को बनाए रखने वाली, 'नियति' की जिनागम-सम्मत अवधारणा क्या होनी चाहिये, इस पर आगे चलकर विचार करेंगे।
इस प्रकार, प्रस्तुत अनुच्छेद के सारांशस्वरूप, सम्मइसुत्तं (सन्मतिसूत्र)