________________
अनेकान्त 61/1-2-3-4
____पुरुष की सिद्धि पुरुषार्थ से होती है। हमारी संस्कृति में पुरुषार्थ चार माने गये हैं - 1. धर्म 2. अर्थ 3. काम 4. मोक्ष। पुरुषार्थसिद्ध्युपाय में इन चारों पुरुषार्थो का वर्णन मिलता है, जो इस प्रकार है -
1. धर्म पुरुषार्थ - ___ धर्म को प्रथम पुरुषार्थ माना गया है क्योंकि यह चतुर्थ मोक्ष-पुरुषार्थ की सिद्धि में सहायक बनता है। यद्यपि अर्थ और काम का संबंध संसार से है, लेकिन यदि वे भी धर्म-सम्मत हैं तो पुरुषार्थ की श्रेणी में आते हैं; मोक्षप्राप्ति में सहायक बन जाते हैं। अतः यह मानना चाहिए कि बिना धर्म से सम्बन्ध हुए कोई भी कार्य पुरुषार्थ की श्रेणी में नहीं आयेगा। ___धर्म पुरुषार्थ के लिये मिथ्यात्व को छोड़कर सम्यग्दर्शन प्राप्त करना चाहिए। सम्यग्दर्शन के उपरान्त जिसने समीचीन ज्ञान प्राप्त किया है, ऐसा पुरुष सम्यक्चारित्र पथ को अंगीकार करता है। वह मद्य, मांस, मधु एवं पंच उदुम्बर फलों को त्याग कर अष्टमूलगुणों का पालन करता है। जो अष्टमूलगुणों का पालन करता है, वही धर्मोपदेश का पात्र है -
अष्टावनिष्टदुस्तरदुरितायतनान्यमूनि परिवर्ण्य। जिनधर्मदेशनाया भवन्ति पात्राणि शुद्धधियः ।। अर्थात् इन आठ अनिष्ट, कठिनता से छूटने वाले और पापों की खान स्वरूप पदार्थो को छोड़कर ही शुद्ध बुद्धि वाले पुरुष जिनधर्म के उपदेश को ग्रहण करने के पात्र होते हैं।
धर्म पुरुषार्थी श्रावक त्रस हिंसा का त्याग करता है और निरर्थक स्थावर हिंसा का भी त्याग करता है। धर्म अहिंसामय है। धर्मार्थ हिंसा भी पाप है -
सूक्ष्मो भगवद्धर्मो धर्मार्थं हिंसने न दोषोस्ति।
इति धर्ममुग्धहृदयैर्न जातु भूत्वा शरीरिणो हिंस्याः।।। अर्थात् भगवान् का बताया हुआ धर्म सूक्ष्म है। 'धर्म के लिए हिंसा करने में दोष नहीं हैं। इस प्रकार धर्म में मूढबुद्धि रखने वाले हृदयसहित बनकर कभी प्राणी नहीं मारने चाहिए।
इस प्रकार की विचारधारा के साथ वह हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह रूप पाँच पापों का त्याग करता हुआ व्रताचरण करता है। रात्रिभोजन एवं अनछने जल के सेवन का त्याग करता है। देवपूजा आदि छह आवश्यकों का पालन करता