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अनेकान्त 61/ 1-2-3-4
महाव्रत के योग्य भी नहीं है, किन्तु आर्यिका एक साड़ी मात्र धारण करने पर भी ममत्व रहित होने से उपचार महाव्रती है। 12 एक साड़ी पहनना और बैठकर आहार करना इन दो चर्याओं में ही मुनियों से इनमें अन्तर है ।”
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श्रमणों और आर्यिकाओं के बीच मर्यादाओं का विधान मूलाचार में किया गया है उसमें एक भी विधान ऐसा नहीं है जिसका पालन वर्तमान में सहजतया न किया जा सके, प्रत्युत वर्तमान के वातावरण में उसका पालन अधिक दृढ़ता पूर्वक होना चाहिए ।
सन्दर्भ
1. संस्कृत - हिन्दी कोश, वामन शिवराम आप्टे, प्रका. मोतीलाल बनारसी दास, दिल्ली, द्वि. सं., 1969, पृ. 160.
2. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग-2, संक. क्षु. जिनेन्द्रवर्णी, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, पृष्ठ 386-88. 3. मूलाचार-आचार्य वट्टकेर विरचित, वसुनन्दि की संस्कृत वृत्ति सहित, प्रका. भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 2006, गाथा - 177, 184, 185, 187, 191, 196.
4. त्यक्ताशेष गृहस्थवेषरचना मंदोदरी संयता। ( पर्व 78, छन्द 94)
श्रीमती श्रमणी पार्श्वे बभूवुः परमार्थिका । - पद्मपुराण
5. मूलाचार, देखें गाथा 178, 192, वृत्ति सहित, तथा गाथा- 194
6.
7. मूलाचार - गाथा - 187, वृत्ति सहित
8. मूलाचार आचारवृत्ति, गा. 193, पृ. 158
9. मूलाचार आचारवृत्ति; विशेषार्थ सहित; गाथा - 384; पृ. 305-6
10. मूलाचार, गाथा - 177 वृत्ति सहित, पृ. 146
11. यही गाथा समयसाराधिकार में भी है, देखें गाथा - 954 (मात्र भिक्षा ग्रहण का प्रयोग नहीं है ।)
मूलाचार, गाथा- 190, आचारवृत्ति, पृष्ठ-155
12. कौपीनेऽपि समूर्च्छत्वात् नार्हत्यार्यो महाव्रतम् ।
अपि भाक्तममूर्च्छत्वात् साटिकेऽप्यार्यिकार्हति । ।
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- मूलाचार, उत्तरार्द्ध; आद्य उपोद्घात, पृ० 5
अन्य सहायक ग्रन्थ
1. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग 1, 2, 3, 4, 5
2. मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन- डॉ. फूलचन्द जैन प्रेमी, प्रका. पार्श्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी